الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فخاطب الكاف من ذلك بصفة العلم الذي هو اللام المخفوضة بالنزول لأنه يتنزه عن إن تدرك ذاته فقال للكاف التي هي الكلمة الإلهية ذلك الكتاب المنزل عليك هو علمي لا علمك لا ريب فيه عند أهل الحقائق أنزله في معرض الهداية لمن اتقاني و أنت المنزل فأنت محله و لا بد لكل كتاب من أم و أمه ذلك الكتاب المجهول لا تعرفه أبدا لأنه ليس بصفة لك و لا لأحد و لا ذات و إن شئت أن تحقق هذا فانظر إلى كيفية حصول العلم في العالم أو حصول صورة المرئي في الرائي فليست و ليس غيرها فانظر إلى درجات حروف لا ريب فيه هدى للمتقين و منازلها على حسب ما نذكره بعد الكلام الذي نحن بصدده و تدبر ما بثثته لك و حل عقدة لام الألف من لا ريب تصير ألفان لأن تعريقة اللام ظهرت صورتها في نون المتقين و ذلك لتاخر الألف عن اللام من اسمه الآخر و هي المعرفة التي تحصل للعبد من نفسه في «قوله عليه السّلام من عرف نفسه عرف ربه» فقدم معرفة اللام على معرفة الألف فصارت دليلا عليه و لم يمتزجا حتى يصيرا ذاتا واحدة بل بان كل واحد منهما بذاته و لهذا لا يجتمع الدليل و المدلول و لكن وجه الدليل هو الرابط و هو موضع اتصال اللام بالألف فاضرب الألفين اا أحدهما في الآخر تصح لك في الخارج ألف واحدة آ و هذا حقيقة الاتصال كذلك اضرب المحدث في القديم حسا يصح لك في الخارج المحدث و يخفى القديم بخروجه و هذا حقيقة الاتصال و الاتحاد ﴿وَ إِذْ قٰالَ رَبُّكَ لِلْمَلاٰئِكَةِ إِنِّي جٰاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً﴾ [البقرة:30] و هذا نقيض إشارة الجنيد في قوله للعاطس إن المحدث إذا قورن بالقديم لم يبق له أثر لاختلاف المقام أ لا ترى كيف اتصل لام الألف من لا ريب فيه من الكرسي فبدت ذاتان لآ جهل سر العقد بينهما ثم فصلهما العرش عند الرجوع إليه و الوصول فصارت على هذا الشكل آل فظهرت اللام بحقيقتها لأنه لم يقم بها مقام الاتصال و الاتحاد من يردها على صورته فأخرجنا نصف الدائرة من اللام التي خفيت في لام الألف إلى عالم التركيب و الحس فبقيت ألفان أ أ في الفرق فضربنا الواحد في الواحد و هو ضرب الشيء في نفسه فصار واحدا آ فلبس الواحد الآخر فكان الواحد رداء و هو الذي ظهر و هو الخليفة المبدع بفتح الدال و كان الآخر مرتديا و هو الذي خفي و هو القديم المبدع فلا يعرف المرتدي إلا باطن الرداء و هو الجمع و يصير الرداء على شكل المرتدي فإن قلت واحد صدقت و إن قلت ذاتان صدقت عينا و كشفا و لله در من قال

رق الزجاج و رقت الخمر *** فتشاكلا فتشابه الأمر

فكأنما خمر و لا قدح *** و كأنما قدح و لا خمر



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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