الفتوحات المكية

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و بعد أن فهمناك مراتبهم في هذا المقام و فرقنا لك بين معصية العارفين و بين معاصي العامة من علماء الرسوم و مقلديهم فاعلم أنه حكي عن بعضهم أنه قال اقعد على البساط يريد بساط العبادة و إياك و الانبساط أي التزم ما تعطيه حقيقة العبودة من حيث إنها مكلفة بأمور حدها له سيدها فإنه لو لا تلك الأمور لاقتضي مقامها الإدلال و الفخر و الزهو من أجل مقام من هو عبد له و منزلته كما زها يوما عتبة الغلام و افتخر فقيل له ما هذا الزهو الذي نراه في شمائلك مما لم يكن يعرف قبل ذلك منك فقال و كيف لا أزهو و قد أصبح لي مولى و أصبحت له عبدا فما قبض العبيد من الإدلال و أن يكونوا في الدنيا مثل ما هم في الآخرة إلا التكليف فهم في شغل بأوامر سيدهم إلى أن يفرغوا منها فإذا لم يبق لهم شغل قاموا في مقام الإدلال الذي تقتضيه العبودية و ذلك لا يكون إلا في الدار الآخرة فإن التكليف لهم مع الأنفاس في الدار الدنيا فكل صاحب إدلال في هذه الدار فقد نقص من المعرفة بالله على قدر إدلاله و لا يبلغ درجة غيره ممن ليس له إدلال أبدا فإنه فاتته أنفاس كثيرة في حال إدلاله غاب عما يجب عليه فيها من التكليف الذي يناقض الاشتغال به الإدلال فليست الدنيا بدار إدلال أ لا ترى عبد القادر الجيلي مع إدلاله لما حضرته الوفاة و بقي عليه من أنفاسه في هذه الدار ذلك القدر الزماني وضع خده في الأرض و اعترف بأن الذي هو فيه الآن هو الحق الذي ينبغي أن يكون العبد عليه في هذه الدار و سبب ذلك أنه كان في أوقات صاحب إدلال لما كان الحق يعرفه به من حوادث الأكوان و عصم اللّٰه أبا السعود تلميذه من ذلك الإدلال فلازم العبودية المكلفة مع الأنفاس إلى حين موته فما حكي أنه تغير عليه الحال عند موته كما تغير على شيخه عبد القادر و حكى لنا الثقة عندنا قال سمعته يقول طريق عبد القادر في طرق الأولياء غريب و طريقنا في طرق عبد القادر غريب رضي اللّٰه عن جميعهم و نفعنا بهم و اللّٰه يعصمنا من المخالفات و إن كانت قدرت علينا فالله أسأل أن يجعلنا في ارتكابها على بصيرة حتى يكون لنا بها ارتقاء درجات ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]



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