الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4364 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[عصمة الرسول في التبليغ و في غيره]

و لا تشترط أيضا في حقه العصمة إلا فيما يبلغه عن اللّٰه خاصة و يلزمه تبيين ما جاء به حتى يفهم عنه لإقامة الحجة على المبلغ إليه فإن عصم من غير هذا فمن مقام آخر و هو أن يخاطب العباد المرسل إليهم بالتأسي به فيكون التأسي به أصلا فإن انفرد بأمر لزمه أن يبينه لا بد من ذلك كما قال في نكاح الهبة ﴿خٰالِصَةً لَكَ مِنْ دُونِ الْمُؤْمِنِينَ﴾ [الأحزاب:50] و من شرط صاحب هذا المقام طهارة القلب من الفكر فله الراحة فإنه لا يشرع إلا ما يوحى به إليه

[مشورة النبي لأصحابه هي من مقام خلافته لا من مقام نبوته]

و أما مشورته لأصحابه ففي غير ما شرع له و ليس للرسول من حيث رسالته المشاورة فإذا انضاف إلى رسالته أن تكون جامعة فلمقام الخلافة المشورة و لما كان رسول اللّٰه ﷺ من الخلفاء قيل له ﴿وَ شٰاوِرْهُمْ فِي الْأَمْرِ﴾ [آل عمران:159] فينبغي لك أن تعرف الفرق بين الخلافة و الرسالة

(الباب الستون و مائة في معرفة الرسالة الملكية)

تنزلت الأملاك ليلا على قلبي *** و دارت عليه مثل دائرة القلب

حذارا من إلقاء اللعين إذا يرى *** نزول علوم الغيب عينا على قلب

و ذلك حفظ اللّٰه في مثل طورنا *** و عصمته في المرسلين بلا ريب

فنحن و إياهم مصانون بالحمى *** تخاطبنا الأسماء من حضرة القرب

و يفترق الصنفان عند رجوعهم *** من المشهد الأعلى إلى عالم الترب

فيظهر هذا بالرسالة واضعا *** حدودا و أحكاما عن الروح و الرب

و ذلك مأمور بستر مقامه *** و إن كان قد داناه في الذوق و الشرب

فسبحان من أعطى الوجود بجوده *** و قسمه قسمين للكشف و الحجب

فأشهد ذا فضلا و سبق عناية *** و أوقف ذا خلف الحجاب بلا ذنب

فقف و تأدب و اتعظ ثم و لا تقل *** حجبت بلا ذنب و هذا من الذنب

ألا إنما العقبي لمن بات سره *** يرى البعد و التقريب في الذنب و العتب

[سفراء الحق إلى الخلق بتنفيذ الأحكام في عالم الأركان]

قال تعالى ﴿فِي صُحُفٍ مُكَرَّمَةٍ مَرْفُوعَةٍ مُطَهَّرَةٍ﴾



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!