الفتوحات المكية

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﴿إِلَيْهِ يُرْجَعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ﴾ [هود:123] فابحث على صفات إبراهيم عليه السّلام و قم بها عسى اللّٰه أن يرزقك بركته فإنه بالخلة قام بها ما هي أوجبت له الخلة فلهذا دللناك على التخلق بأخلاق اللّٰه و «قد قال ﷺ بعثت لأتمم مكارم الأخلاق» و معنى هذا أنه لما قسمت الأخلاق إلى مكارم و إلى سفساف و ظهرت مكارم الأخلاق كلها في الشرائع على الأنبياء و الرسل و تبين سفسافها من مكارمها عند الجميع و ما في العالم على ما يقوم عليه الدليل و يعطيه الكشف و المعرفة إلا أخلاق اللّٰه فكلها مكارم فما ثم سفساف أخلاق فبعث رسول اللّٰه ﷺ بالكلمة الجامعة إلى الناس كافة و أوتي جوامع الكلم و كل نبي تقدمه على شرع خاص فأخبر ﷺ أنه بعث ليتمم مكارم الأخلاق لأنها أخلاق اللّٰه فالحق ما قيل فيه إنه سفساف أخلاق بمكارم الأخلاق فصار الكل مكارم أخلاق فما ترك ﷺ في العالم سفساف أخلاق جملة واحدة لمن عرف مقصد الشرع فأبان لنا مصارف لهذا المسمى سفساف أخلاق من حرص و حسد و شره و بخل و فزع و كل صفة مذمومة فأعطانا لها مصارف إذا أجريناها على تلك المصارف عادت مكارم أخلاق و زال عنها اسم الذم و كانت محمودة فتمم اللّٰه به مكارم الأخلاق فلا ضد له كما أنه لا ضد للحق و كل ما في الكون أخلاقه فكلها مكارم و لكن لا تعرف و ما أمر اللّٰه باجتناب ما يجتنب منها إلا لاعتقادهم فيها إنها سفساف أخلاق و أوحى إلى نبيه أن يبين مصارفها ليتنبهوا فمنا من علم و منا من جهل فهذا معنى قوله إنه بعث ليتمم مكارم الأخلاق و به كان خاتما

(الباب الثمانون و مائة في معرفة مقام الشوق و الاشتياق و هو من نعوت المحبين العشاق)

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شوق بتحصيل الوصال يزول *** و الاشتياق مع الوصال يكون

إن التخيل للفراق يديمه *** عند اللقاء فربه مغبون

من قال هون صعبة قلنا له *** ما كل صعب في الوجود يهون



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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