الفتوحات المكية

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فوهبه اللّٰه حكما و هي الرسالة فجعله من المرسلين : إلى من خاف أن يسلط عليه و هو فرعون فإذا أنتج له هذا الفرار من المخلوق خوفا على نفسه فأين أنت من المحمدي الذي أمرك أن تفر إلى اللّٰه فقيدك بحرف الغاية في القصد الأول فربط لك البداية بالنهاية فقال لنا ﴿فَفِرُّوا إِلَى اللّٰهِ﴾ [الذاريات:50] فالموسوي يفر من و المحمدي يفر إلى عن أمر اللّٰه تعالى إياه بذلك الفرار فما أكمل شرعه و ما أعلى رتبته و الحكم منقطع و الرسالة منقطعة و لذلك «قال رسول اللّٰه ﷺ إن الرسالة و النبوة قد انقطعت فلا رسول بعدي و لا نبي» فيزول الحكم المشروع بزوال الدنيا و يرجع الحكم إلى اللّٰه الذي نفر إليه بلا واسطة فالذي ينتج الفرار إليه لا يقدر قدره فإنه كشف محمدي يربي على كشف الرسل من حيث هم رسل عليه السّلام فيثبتهم هذا الفار في أماكنهم و يجوز بكشفه فوق رتبة خطاب التكليف فيرى أحدية العين فيقف معها و منها يستشرف على أحدية الكثرة فيرى أيضا نفسه هناك معهم في أحدية الكثرة فيأمرها على بينة من ربه و بصيرة أن تنتظم في سلك المكلفين فتنصرف النفوس المحسوسة هنا من هؤلاء الفارين إلى اللّٰه عن أمرهم فتراهم معصومين محفوظين فالرسل منهم معصومون في خلافهم و الأولياء محفوظون في خلافهم فللرسل التشريع و للأولياء الانفعال بحسب ما يشهدونه هنالك فيكونون في خلافهم على بصيرة و لا يدعون إليه و إنما يدعون إلى اللّٰه كما تفعل الرسل عليه السّلام قال اللّٰه تعالى لنبيه أن يقول ﴿أَدْعُوا إِلَى اللّٰهِ عَلىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا وَ مَنِ اتَّبَعَنِي﴾ فما أفرد نفسه بل ذكر اتباعه معه فإنهم لا يكونون أتباعه إلا حتى يكونوا على قدمه فيشهدون ما يشهد و يرون ما يرى فخذوا من العلماء بالله الدعاة إلى اللّٰه ما يقولون و لا تنظروا إلى أفعالهم و أحوالهم فإنهم على ما عين الحق لهم غير ذلك لا يكون قال بعض الصالحين في جلساتهم من جالسهم و خالفهم في شيء مما يتحققون به نزع اللّٰه نور الايمان من قلبه فليس لجلسائهم إن يفعلوا مثل أفعالهم و إنما عليهم إنهم لا ينازعونهم فيما يظهر عليهم من علم الحقيقة فإن أحوالهم تجري عليها و لذلك قال نزع اللّٰه نور الايمان من قلبه فلا يصدقهم فيما يخبرون به عن الحق و هم بهذه المثابة من القرب من اللّٰه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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