الفتوحات المكية

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﴿لَزُلْفىٰ وَ حُسْنَ مَآبٍ﴾ [ص:25] أي ما ينقصه هذا الملك من ملك الآخرة شيء كما يفعله مع غيره حيث أنقصه من نعيم الآخرة على قدر ما تنعم به في الدنيا قال اللّٰه تعالى في حق قوم ﴿أَذْهَبْتُمْ طَيِّبٰاتِكُمْ فِي حَيٰاتِكُمُ الدُّنْيٰا وَ اسْتَمْتَعْتُمْ بِهٰا﴾ [الأحقاف:20]

[الصبر عن اللّٰه أعظم أنواع الصبر]

فالصبر عن اللّٰه بهذا التفسير أعظم أنواع الصبر و أما الصبر عن اللّٰه على ما يتخيله العامة من الصبر عن كذا لمفارقته إياه فليس ذلك من شأن أهل اللّٰه و الشبلي لما غشى عليه من قول الشاب إن الصبر عن اللّٰه أعظم الصبر غشى عليه لعظم المقام الذي لا يناله إلا الكمل من الرجال فلما لاح للشبلي من كلام الشاب كان وارده أقوى من محل الشبلي فلذلك أثر فيه الغشي و هكذا كل وارد يكون أقوى من قوة المحل فإنه يفعل فيه الغشي و الصعق و ليس لأهل اللّٰه قدم في الصبر عن اللّٰه على تفسير العامة

[درجات الصبر عند العارفين]

و للصبر درجات عند العارفين من أهل الأنوار ثلاثمائة و ثلاث و عشرون درجة و عند أهل الأسرار منهم مائتان و ثلاث و تسعون درجة و عند الملامية من أهل الأنوار مائتان و اثنتان و تسعون و عند أهل الأسرار منهم مائتان و اثنتان و ستون درجة

(الباب الخامس و العشرون و مائة في معرفة مقام ترك الصبر و أسراره)

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و في الصبر من سوء الصنيعة أنه *** يقاوم قهر الحق في كل إقدام

فلا صبر عند العارفين فإنهم *** من الضعف في بحر على سيفه طام

[في الصبر المعروف عند العامة مقاومة القهر الإلهي]

اعلم علمك اللّٰه أن في الصبر المعروف عند العامة مقاومة القهر الإلهي و سوء أدب مع اللّٰه و ما ابتلى اللّٰه عباده إلا ليتضرعوا إليه و يسألوه في رفع ما ابتلاهم به من البلاء عنهم لأنه دواء لما تعطيهم في نفوسهم من المرض الصورة التي خلقوا عليها فيدعيها من لم تكمل فيه الصورة فإنه من كمالها الخلافة و هم المكملون من الرجال و من لم تحصل له درجة الخلافة فما هو على الصورة فإنه بالمجموع يكون بالصورة



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