الفتوحات المكية

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و أما ظاهر الرداء فلا يعرف المرتدي أبدا و إنما يعرف باطن ذاته و هو حجابه فكذلك لا يعلم الحق إلا العلم كما لا يحمده على الحقيقة إلا الحمد و أما أنت فتعلمه بوساطة العلم و هو حجابك فإنك ما تشاهد إلا العلم القائم بك و إن كان مطابقا للمعلوم و علمك قائم بك و هو مشهودك و معبودك فإياك إن تقول إن جريت على أسلوب الحقائق إنك علمت المعلوم و إنما علمت العلم و العلم هو العالم بالمعلوم و بين العلم و المعلوم بحور لا يدرك قعرها فإن سر التعلق بينهما مع تباين الحقائق بحر عسير مركبه بل لا تركبه العبارة أصلا و لا الإشارة و لكن يدركه الكشف من خلف حجب كثيرة دقيقة لا يحس بها أنها على عين بصيرته لرقتها و هي عسيرة المدرك فأحرى من خلقها فانظر أين هو من يقول إني علمت الشيء من ذلك الشيء محدثا كان أو قديما بل ذلك في المحدث و أما القديم فأبعد و أبعد إذ لا مثل له فمن أين يتوصل إلى العلم به أو كيف يحصل و سيأتي الكلام على هذه المسألة السنية في الفصل الثالث من هذا الباب فلا يعرف ظاهر الرداء المرتدي إلا من حيث الوجود بشرط أن يكون في مقام الاستسقاء ثم يزول و يرجع لأنها معرفة علة لا معرفة جذب و هذه رؤية أصحاب الجنة في الآخرة و هو تجل في وقت دون وقت و سيأتي الكلام عليه في باب الجنة من هذا الكتاب و هذا هو مقام التفرقة و أما أهل الحقائق باطن الرداء فلا يزالون مشاهدين أبدا و مع كونهم مشاهدين فظاهرهم في كرسي الصفات ينعم بمواد بشرة الباطن نعيم اتصال و انظر إلى حكمته في كون ذلك مبتدأ و لم يكن فاعلا و لا مفعولا لما لم يسم فاعله لأنه لا يصح أن يكون فاعلا لقوله لا ريب فيه فلو كان فاعلا لوقع الريب لأن الفاعل إنما هو فكيف ينسب إليه ما ليس بصفته لأن مقام الذال أيضا يمنع ذلك فإنه من الحقائق التي كانت و لا شيء معها و لهذا لا يتصل بالحروف إذا تقدم عليها كالألف و أخواته الدال و الراء و الزاي و الواو و لا يقول فيه أيضا مفعول لم يسم فاعله لأنه من ضرورته أن يتقدمه كلمة على بنية مخصوصة محلها النحو و الكتاب هنا نفس الفعل و الفعل لا يقال فيه فاعل و لا مفعول و هو مرفوع فلم يبق إلا أن يكون مبتدأ و معنى مبتدأ لم يعرف غيره من أول وهلة ﴿أَ لَسْتُ بِرَبِّكُمْ قٰالُوا بَلىٰ﴾ [الأعراف:172] فإن قيل من ضرورة كل مبتدأ أن يعمل فيه ابتداء قلنا نعم عمل فيه أم الكتاب فهي الابتداء العاملة في الكتاب و العامل في الكل حقا و خلقا اللّٰه الرب و لهذا نبه اللّٰه تبارك و تعالى بقوله ﴿أَنِ اشْكُرْ لِي وَ لِوٰالِدَيْكَ﴾ [لقمان:14]



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