الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 99 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿إِنْ تَتَّقُوا اللّٰهَ يَجْعَلْ لَكُمْ فُرْقٰاناً﴾ [الأنفال:29] و قال ﴿وَ يَجْعَلْ لَكُمْ نُوراً تَمْشُونَ بِهِ﴾ [الحديد:28] قيل للجنيد بما نلت ما نلت فقال بجلوسي تحت تلك الدرجة ثلاثين سنة و قال أبو يزيد أخذتم علمكم ميتا عن ميت و أخذنا علمنا عن الحي الذي لا يموت فيحصل لصاحب الهمة في الخلوة مع اللّٰه و به جلت هبته و عظمت منته من العلوم ما يغيب عندها كل متكلم على البسيطة بل كل صاحب نظر و برهان ليست له هذه الحالة فإنها وراء النظر العقلي إذ كانت العلوم على ثلاث مراتب(علم العقل)و هو كل علم يحصل لك ضرورة أو عقيب نظر في دليل بشرط العثور على وجه ذلك الدليل و شبهه من جنسه في عالم الفكر الذي يجمع و يختص بهذا الفن من العلوم و لهذا يقولون في النظر منه صحيح و منه فاسد(و العلم الثاني)علم الأحوال و لا سبيل إليها إلا بالذوق فلا يقدر عاقل على أن يحدها و لا يقيم على معرفتها دليلا كالعلم بحلاوة العسل و مرارة الصبر و لذة الجماع و العشق و الوجد و الشوق و ما شاكل هذا النوع من العلوم فهذه علوم من المحال أن يعلمها أحد إلا بأن يتصف بها و يذوقها و شبهها من جنسها في أهل الذوق كمن يغلب على محل طعمه المرة الصفراء فيجد العسل مرا و ليس كذلك فإن الذي باشر محل الطعم إنما هو المرة الصفراء (و العلم الثالث)علوم الأسرار و هو العلم الذي فوق طور العقل و هو علم نفث روح القدس في الروع يختص به النبي و الولي و هو نوعان نوع منه يدرك بالعقل كالعلم الأول من هذه الأقسام لكن هذا العالم به لم يحصل له عن نظر و لكن مرتبة هذا العلم أعطت هذا و النوع الآخر على ضربين ضرب منه يلتحق بالعلم الثاني لكن حاله أشرف و الضرب الآخر من علوم الأخبار و هي التي بدخلها الصدق و الكذب إلا أن يكون المخبر به قد ثبت صدقه عند المخبر و عصمته فيما يخبر به و يقوله كإخبار الأنبياء صلوات اللّٰه عليهم عن اللّٰه كإخبارهم بالجنة و ما فيها «فقوله إن ثم جنة من علم»



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!