الفتوحات المكية

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الخبر و «قوله في القيامة إن فيها حوضا أحلى من العسل من علم الأحوال» و هو علم الذوق و «قوله كان اللّٰه و لا شيء معه» و مثله من علوم العقل المدركة بالنظر فهذا الصنف الثالث الذي هو علم الأسرار العالم به يعلم العلوم كلها و يستغرقها و ليس صاحب تلك العلوم كذلك فلا علم أشرف من هذا العلم المحيط الحاوي على جميع المعلومات و ما بقي إلا أن يكون المخبر به صادقا عند السامعين له معصوما هذا شرطه عند العامة و أما العاقل اللبيب الناصح نفسه فلا يرمي به و لكن يقول هذا جائز عندي أن يكون صدقا أو كذبا و كذلك ينبغي لكل عاقل إذا أتاه بهذه العلوم غير المعصوم و إن كان صادقا في نفس الأمر فيما أخبر به و لكن كما لا يلزم هذا السامع له صدقه لا يلزمه تكذيبه و لكن يتوقف و إن صدقه لم يضره لأنه أتى في خبره بما لا تحيله العقول بل بما تجوزه أو تقف عنده و لا يهد ركنا من أركان الشريعة و لا يبطل أصلا من أصولها فإذا أتى بأمر جوزه العقل و سكت عنه الشارع فلا ينبغي لنا أن نرده أصلا و نحن مخيرون في قبوله فإن كانت حالة المخبر به تقتضي العدالة لم يضرنا قبوله كما نقبل شهادته و نحكم بها في الأموال و الأرواح و إن كان غير عدل في علمنا فننظر فإن كان الذي أخبر به حقا بوجه ما عندنا من الوجوه المصححة قبلناه و إلا تركناه في باب الجائزات و لم نتكلم في قائله بشيء فإنها شهادة مكتوبة نسأل عنها قال تعالى ﴿سَتُكْتَبُ شَهٰادَتُهُمْ وَ يُسْئَلُونَ﴾ و أنا أولى من نصح نفسه في ذلك و لو لم يأت هذا المخبر إلا بما جاء به المعصوم فهو حاك لنا ما عندنا من رواية عنه فلا فائدة زادها عندنا بخبره و إنما يأتون رضي اللّٰه عنهم بأسرار و حكم من أسرار الشريعة مما هي خارجة عن قوة الفكر و الكسب و لا تنال أبدا إلا بالمشاهدة و الإلهام و ما شاكل هذه الطرق و من هنا تكون الفائدة «بقوله عليه السّلام إن يكن في أمتي محدثون فمنهم عمر»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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