الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«روى في النبوة الأولى أن لله تعالى تحت الأرض صخرة صماء في جوف تلك الصخرة حيوان لا منفذ له في الصخرة و إن اللّٰه قد جعل له فيها غذاء و هو يسبح اللّٰه و يقول سبحان من لا ينساني على بعد مكاني» يعني من الموضع الذي تأتي منه الأرزاق لا على بعد مكانها من اللّٰه فإن نسبة اللّٰه إلى خلقه من حيث القرب بسكون الراء نسبة واحدة و من حيث القرب بفتح الراء نسبة مختلفة فاعلم ذلك أو في السموات بما أودع اللّٰه في سباحة الكواكب في أفلاكها من التأثيرات في الأركان لخلق أرزاق العالم أو الأمطار أيضا فإن السماء في لسان العرب المطر قال الشاعر

إذا سقط السماء بأرض قوم

يعني بالسماء هنا المطر و قوله أو في الأرض بما فيها من القبول و التكوين للأرزاق فإنها محل ظهور الأرزاق كالأم محل ظهور الولد الذي للأب فيه أيضا أثر بما ألقاه من الماء في الرحم سواء كان مقصودا له ذلك أو لم يكن كذلك الكوكب يسبح في الفلك و عن سباحته يكون ما يكون في الأركان الأمهات من الأمور الموجبة للولادة و سواء كان ذلك مقصودا للكوكب أو لم يكن بحسب ما يعلمه اللّٰه عزَّ وجلَّ مما أوحى به في كل سماء من الأمر الإلهي الذي لا يعلمه إلا من أوحى به إليه فأينما كانت مثقال هذه الحبة من الخردل لقلتها بل لخفائها يأت بها اللّٰه نبه بهذا التعريف لتأتيه أنت بما كلفك إن تأتيه به فإنك ترجوه فيما تأتيه به و لا يرجوك فيما أتاك به فإنه ﴿غَنِيٌّ عَنِ الْعٰالَمِينَ﴾ [آل عمران:97] و أنت من الفقراء إليه فإتيانك إليه بما كلفك الإتيان به آكد في حقك إن تأتي به لافتقارك و حاجتك لما يحصل لك من المنفعة بذلك ﴿إِنَّ اللّٰهَ لَطِيفٌ﴾ [الحج:63] أي هو أخفى أن يعلم و يوصل إليه أي إلى العلم به من حبة الخردل



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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