الفتوحات المكية

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فالعارفون بالله صغيرهم كبير و كبيرهم لا أعظم منه فإنهم لا يعطون لله إلا أنفس ما عندهم و أحقر ما عندهم فكلهم لله و كل ما عندهم لله العبد و ما يملكه لسيده فيعطون بيد اللّٰه و يشاهدون يد اللّٰه هي الآخذة و هم مبرءون في العطاء و الأخذ مع غاية الاستقامة و المشي على سنن الهدى و الأدب المشروع فيكونون عند الحق بمنزلة ما هو الحق في قلوبهم يعظمون شعائر اللّٰه و حرمات اللّٰه فيعظمهم اللّٰه ﴿يَوْمَ يَقُومُ الْأَشْهٰادُ﴾ [غافر:51] بمرأى منهم و يقيم الآخرين على مراتبهم ف‌ ﴿ذٰلِكَ يَوْمُ التَّغٰابُنِ﴾ [التغابن:9] فيقول فاعل الشر يا ليتني فعلت خيرا و يقول فاعل الخير ليتني زدت و العارف لا يقول شيئا فإنه ما تغير عليه حال كما كان في الدنيا كذلك هو في الآخرة أعني من شهوده ربه و تبريه من الملك و التصرف فيه فلم يقم له عمل مضاف إليه يتحسر على ترك الزيادة منه و بذل الوسع فيه و ما كان منهم من زلل مقدر وقع منهم بحكم التقدير فإن اللّٰه يتوب عليهم فيه بتبديله على قدر الزلة سواء لا يزيد و لا ينقص فإن العارف في كل نفس تائب إلى اللّٰه في جميع أفعاله الصادرة منه توبة شرعية و توبة حقيقية فالتوبة المشروعة هي التوبة من المخالفات و التوبة الحقيقية هي التبري من الحول و القوة بحول اللّٰه و قوته فلم يزل العارف واقفا بين التوبتين في الحياة الدنيا في دار التكليف فإن كان له اطلاع إلهي على أنه قد قيل له افعل ما شئت فقد غفرت لك فإن ذلك لا يخرجه عن تبريه و لم تبق له بعد هذا التعريف توبة مشروعة لأنه بين مباح و ندب و فرض لا حظ له في مكروه و لا محظور لأن الشرع قد أزال عنه هذا الحكم في الدار الدنيا ورد ذلك في الخبر الصحيح عن اللّٰه في العموم و في أهل بدر في الخصوص لكنه في أهل بدر على الترجي و في وقوعه في العموم واقع بلا شك فمن أطلعه اللّٰه عليه من نفسه بأنه من تلك الطائفة فذلك بشرى من اللّٰه في الحياة الدنيا قال اللّٰه تعالى ﴿اَلَّذِينَ آمَنُوا وَ كٰانُوا يَتَّقُونَ لَهُمُ الْبُشْرىٰ فِي الْحَيٰاةِ الدُّنْيٰا وَ فِي الْآخِرَةِ لاٰ تَبْدِيلَ لِكَلِمٰاتِ اللّٰهِ﴾ هذا حال المؤمن المتقي فكيف بحال العارف النقي الذي ما لبس ثوب زور و ما زال نورا في نور فمن حافظ على آداب الشريعة و أعطى الطبيعة ما أوجب اللّٰه عليه من حقها و ما تعدى بها منزلتها كان من العارفين الأدباء و أصحاب السر الأمناء ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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