الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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﴿فَاتَّخِذْهُ وَكِيلاً﴾ [المزمل:9] فامتثل أمر اللّٰه فقال لي أبو البدر قال لي أبو السعود إني أعطيت التصرف في العالم منذ خمس عشرة سنة من تاريخ قوله فتركته و ما ظهر علي منه شيء و أما رجال الباطن فهم الذين لهم التصرف في عالم الغيب و الملكوت فيستنزلون الأرواح العلوية بهممهم فيما يريدونه و أعني أرواح الكواكب لا أرواح الملائكة و إنما كان ذلك لمانع إلهي قوي يقتضيه مقام الأملاك أخبر اللّٰه به في قول جبريل عليه السلام لمحمد صلى اللّٰه عليه و سلم فقال ﴿وَ مٰا نَتَنَزَّلُ إِلاّٰ بِأَمْرِ رَبِّكَ﴾ [مريم:64] و من كان تنزله بأمر ربه لا تؤثر فيه الخاصية و لا ينزل بها نعم أرواح الكواكب تستنزل بالأسماء و البخورات و أشباه ذلك لأنه تنزل معنوي و لمن يشاهد فيه صورا خيالي فإن ذات الكواكب لا تبرح من السماء مكانها و لكن قد جعل اللّٰه لمطارح شعاعاتها في عالم الكون و الفساد تأثيرات معتادة عند العارفين بذلك كالري عند شرب الماء و الشبع عند الأكل و نبات الحبة عند دخول الفصل بنزول المطر و الصحو حكمة أودعها العليم الحكيم جل و عز فيفتح لهؤلاء الرجال في باطن الكتب المنزلة و الصحف المطهرة و كلام العالم كله و نظم الحروف و الأسماء من جهة معانيها ما لا يكون لغيرهم اختصاصا إلهيا و أما رجال الحد فهم الذين لهم التصرف في عالم الأرواح النارية عالم البرزخ و الجبروت فإنه تحت الجبر أ لا تراه مقهورا تحت سلطان ذوات الأذناب و هم طائفة منهم من الشهب الثواقب فما قهرهم إلا بجنسهم فعند هؤلاء الرجال استنزال أرواحها و إحضارها و هم رجال الأعراف و الأعراف سور حاجز بين الجنة و النار برزخ باطنه فيه الرحمة و ظاهره من قبله العذاب فهو حد بين دار السعداء و دار الأشقياء دار أهل الرؤية و دار الحجاب و هؤلاء الرجال أسعد الناس بمعرفة هذا السور و لهم شهود الخطوط المتوهمة بين كل نقيضين مثل قوله ﴿بَيْنَهُمٰا بَرْزَخٌ لاٰ يَبْغِيٰانِ﴾ [الرحمن:20] فلا يتعدون الحدود و هم رجال الرحمة التي



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