الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿اَلَّذِي خَلَقَكَ فَسَوّٰاكَ فَعَدَلَكَ﴾ [الإنفطار:7] و تمت النشأة الظاهرة للبصر ﴿فِي أَيِّ صُورَةٍ مٰا شٰاءَ رَكَّبَكَ﴾ [الإنفطار:8] من صور الأرواح فتنسب إليها كما ذكرنا و هي معينة عند اللّٰه فامتازت الأرواح بصورها ثم إنه إذا فارقت هذه المواد فطائفة من أصحابنا تقول إن الأرواح تتجرد عن المواد تجردا كليا و تعود إلى أصلها كما تعود شعاعات الشمس المتولدة عن الجسم الصيقل إذا صدأ إلى الشمس و اختلفوا هنا على طريقين فطائفة قالت لا تمتاز بعد المفارقة لأنفسها كما لا يمتاز ماء الأوعية التي على شاطئ النهر إذا تكسرت فرجع ماؤها إلى النهر فالأجسام تلك الأوعية و الماء الذي ملئت به من ذلك النهر كالأرواح من الروح الكل و قالت طائفة بل تكتسب بمجاورتها الجسم هيئات رديئة و حسنة فتمتاز بتلك إلهيات إذا فارقت الأجسام كما إن ذلك الماء إذا كان في الأوعية أمور تغيره عن حالته إما في لونه أو رائحته أو طعمه فإذا فارق الأوعية صحبه في ذاته ما اكتسبه من الرائحة أو الطعم أو اللون و حفظ اللّٰه عليها تلك الهيئات المكتسبة و وافقوا في ذلك بعض الحكماء و طائفة قالت الأرواح المدبرة لا تزال مدبرة في عالم الدنيا فإذا انتقلت إلى البرزخ دبرت أجسادا برزخية و هي الصورة التي يرى الإنسان نفسه فيها في النوم و كذلك هو الموت و هو المعبر عنه بالصور ثم تبعث يوم القيامة في الأجسام الطبيعية كما كانت في الدنيا و إلى هنا انتهى خلاف أصحابنا في الأرواح بعد المفارقة و أما اختلاف غير أصحابنا في ذلك فكثير و ليس مقصودنا إيراد كلام من ليس من طريقنا

[إن الجنة التي يصل إليها من هو من أهلها في الآخرة هي مشهودة اليوم]

و اعلم يا أخي تولاك اللّٰه برحمته إن الجنة التي يصل إليها من هو من أهلها في الآخرة هي مشهودة اليوم لك من حيث محلها لا من حيث صورتها فأنت فيها تتقلب على الحال التي أنت عليها و لا تعلم أنك فيها فإن الصورة تحجبك التي تجلت لك فيها فأهل الكشف الذين أدركوا ما غاب عنه الناس يرون ذلك المحل إن كان جنة روضة خضراء و إن كان جهنما يرونها بحسب ما يكون فيه من نعوت زمهريرها و حرورها و ما أعد اللّٰه فيها و أكثر أهل الكشف في ابتداء الطريق يرون هذا و قد نبه الشرع على ذلك «بقوله بين قبري و منبري روضة من رياض الجنة»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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