الفتوحات المكية

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فلا يعلم حتى يسأل فالولد في المرتبة الخامسة لأن أمهاته أربعة و هن الأركان فكان هو العين الخامسة فلهذا كان السؤال هجير البدل الخامس من بين الأبدال و أما مقام السادس فهجيره ﴿أُفَوِّضُ أَمْرِي إِلَى اللّٰهِ﴾ [غافر:44] و هي المرتبة السادسة فكانت للسادس و إنما كانت السادسة له لأنه في المرتبة الخامسة كما ذكرنا يسأل و قد كان لا يعلم فعند ما سأل علم و لما علم تحقق بعلمه بربه ففوض أمره إليه لأنه علم إن أمره ليس بيده منه شيء و أن اللّٰه ﴿يَفْعَلُ مٰا يُرِيدُ﴾ [البقرة:253] فقال قد علمت إن اللّٰه لما ملكني أمري و هو يفعل ما يريد علمت إن التفويض في ذلك أرجح لي فلذلك اتخذه هجيرا و مقام السابع ﴿إِنّٰا عَرَضْنَا الْأَمٰانَةَ﴾ [الأحزاب:72] و ذلك أن لها الرتبة السابعة و كان أيضا تكوين آدم المعبر عنه بالإنسان في الرتبة السابعة فإنه عن عقل ثم نفس ثم هباء ثم فلك ثم فاعلان ثم منفعلان فهذه ستة ثم تكون الإنسان الذي هو آدم في الرتبة السابعة و لما كان وجود الإنسان في السنبلة و لها من الزمان في الدلالة سبعة آلاف سنة فوجد الإنسان في الرتبة السابعة من المدة فما حمل الأمانة إلا من تحقق بالسبعة و كان هذا هو السابع من الأبدال فلذلك اتخذ هجيراه هذه الآية فهذا قد بينا لك مراتب الأبدال

[خلفاء القطب مداوي الكلوم]

و أخبرت أن هذا القطب الذي هو مداوي الكلوم كان في زمان حبسه في هيكله و ولايته في العالم إذا وقف وقف لوقفته سبعون قبيلة كلهم قد ظهرت فيهم المعارف الإلهية و أسرار الوجود و كان أبدا لا يتعدى كلامه السبعة و مكث زمانا طويلا في أصحابه و كان يعين في زمانه من أصحابه شخصا فاضلا كان أقرب الناس إليه مجلسا كان اسمه المستسلم فلما درج هذا الإمام ولي مقامه في القطبية المستسلم و كان غالب علمه علم الزمان و هو علم شريف منه يعرف الأزل و منه ظهر قوله عليه السّلام كان اللّٰه و لا شيء معه و هذا علم لا يعلمه إلا الأفراد من الرجال و هو المعبر عنه بالدهر الأول و دهر الدهور و عن هذا الأزل وجد الزمان و به تسمى اللّٰه بالدهر و هو «قوله عليه السّلام لا تسبوا الدهر فإن اللّٰه هو الدهر»



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