الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فمن راعى قصر الأمل و جهل الأجل أوجب و من راعى اتساع الزمان خير و من راعى الاحتياط استحب و كل حال من هذه الأحوال له اسم إلهي لا يتعدى حكمه فيه فإن الكون في قبضة الأسماء الإلهية تصرفه بطريقين بحسب حقائقها و بحسب استعدادات الأكوان لها لا بد من الأمرين لذي عينين فإن الأوصاف النفسية للأسماء و غير الأسماء لا تنقلب فافهم ذلك و تحققه تسعد إن شاء اللّٰه تعالى

(وصل في فصل من أخر قضاء رمضان حتى دخل عليه رمضان آخر)

اختلف العلماء فيمن هذه حاله فقالت طائفة عليه القضاء و الكفارة و قالت طائفة عليه القضاء و لا كفارة عليه و به أقول

(الاعتبار)

المقامات التي لها جهات كثيرة مختلفة قد يغفل السالك عن حكمها في جهة ما من جهات متعلقاتها كالورع فإن له حكما في جهات كثيرة منها في الطعام و الشراب و اللباس و الأخذ و النظر و الاستماع و السعي و اللمس و الشم فإن عمر بن الخطاب أتى بمسك من المغانم قبل أن تأخذه القسمة ليعرض عليه فمسك بأنفه لئلا ينال من رائحة شيئا دون المسلمين قبل أن تأخذه القسمة ورعا فسئل عن ذلك فقال إنما ينتفع من هذا بريحة و كذلك الورع في النسب و الأسماء

[الإنسان مؤاخذ بالغفلات في الطريق الصوفي]

فإذا فات السالك وجه من وجوه متعلقات مثل هذا المقام و انتقل إلى غيره من المقامات و قد بقيت عليه بقية من حكم هذا المقام الذي انتقل عنه فإذا تعين عليه استعماله في وقت آخر لحالة تطلبه بذلك من مطعم أو غيره يتذكر ما فاته قبل ذلك منه فمنا من قال عليه الكفارة و كفارته التوبة مما جرى منه في تفريطه و الاستغفار و منا من قال لا كفارة عليه فإنه لم يتعمد و لا قصد انتهاك الحرمة و إنما جعله في ذلك عذر من تأويل في المسألة أو غفلة و الإنسان في هذا الطريق مؤاخذ بالغفلات عند بعضهم و لهذا أوجب الكفارة عليه من أوجبها و من يرى أنه غير مؤاخذ بالغفلات لم يوجب عليه كفارة



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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