الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 9214 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و ذلك لأنا ما عرفنا من القوي الموجودة في الإنسان إلا قدر ما أوجد فيه و ربما في علم اللّٰه عنده أو في الإمكان قوى لم يوجدها اللّٰه تعالى فينا اليوم حتى لو قيل للفرس عن القوة التي تميز بها الإنسان عنه أنكرها و في طريق اللّٰه ما يقوله أهل الطريق في إثبات المقام الذي فوق طور العقل و هي قوة يوجدها اللّٰه في بعض عباده من رسول و نبى و ولي تعطي خلاف ما أعطته قوة العقل حتى إن بعض العقلاء أنكر ذلك و الشرع أثبته و نحن نعلم أن في نشأة الآخرة قوى لا تكون في نشأة الدنيا و لا يحكم بها عقل هنا و لا تنال إلا بالذوق عند من أوجدها اللّٰه فيه و تحصل لبعض الناس هنا ﴿فَلاٰ تَعْلَمُ نَفْسٌ مٰا أُخْفِيَ﴾ [ السجدة:17] لها فيها ﴿مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ﴾ [ السجدة:17] «و في الجنة ما لا عين رأت و لا أذن سمعت و لا خطر على قلب بشر» فخرج عن طور العقل بتعيين أمر ما و ما خرج عن طور العقل بالإمكان إذ لا حكم للعقل فيما يعنيه اللّٰه من الأمور إلا الإمكان خاصة أو ما تتحير فيه فلهذا جاءت كلمة لعل و هي كلمة ترج و كل ترج إلهي فهو واقع فلا بد منه فهذا هو الأمر الذي يحديه في النشأة و أما في الأحكام فمعلوم في العلم الرسمي إلى يوم القيامة فإن الرسول ﷺ لما قرر حكم المجتهد لا يزال حكم الشرع ينزل من اللّٰه على قلوب المجتهدين إلى انقضاء الدنيا فقد يحكم اليوم مجتهد في أمر لم يتقدم فيه ذلك الحكم و اقتضاه له دليل هذا لمجتهد من كتاب أو سنة أو إجماع أو قياس جلي فهذا أمر قد حدث في الحكم إذا تعداه المجتهد أو المقلد له ﴿فَقَدْ ظَلَمَ نَفْسَهُ﴾ [البقرة:231] فهذا أو أمثاله مما يعطيه هذا الذكر و هذا القدر من الإشارة في هذا الذكر كاف إن شاء اللّٰه فإن هذا الذي يعطيه هذا الذكر فيه تفصيل كثير و تمثيل نبهناك على المأخذ فيه



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!