الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 9194 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

ذلك فتاجر الدكان لا يحتاج إلى زاد لأنه يسافر إليه و لا يسافر و ليس إلا العارفون ترد عليهم الأنفاس ثم تخرج عنهم تلك الأنفاس فهي لهم كعرض المتاع على تاجر الدكان فيأخذ منها ما شاء و يترك ما شاء لأن الأنفاس قد ترد على العارف بما هو محمود و هي البضائع التي لا عيب فيها المثمنة خيار المتاع و نقاوته و مذموم و هي البضائع المعيبة التي نقص ما فيها من العيب ما كانت تستحقه من الثمن لو سلمت منه و هي البضائع الوخش شر المتاع فانظر أي تاجر تريد أن تكون ثم إن المسافرين من التجار الذين أمرهم اللّٰه بالزاد الذي لا يفضل عنهم بعد انقضاء سفرهم منه شيء بل يكون على قدر المسافة فهم على ثلاثة أصناف صنف منهم يسافر برا و آخر يسافر بحرا و آخر يسافر برا و بحرا بحسب طريقه فمسافر البحر بين عدوين نفس الطريق و ما فيه و مسافر البر ذو عدو واحد و الجامع بينهما في سفره ذو ثلاثة أعداء فمسافر البحر أهل النظر في المعقولات و من النظر في المعقولات النظر في المشروعات فهم بين عدو شبهة و هو عين البحر و بين عدو تأويل و هو العدو الذي يقطع في البحر و مسافر البر المقتصرون على الشرع خاصة و هم أهل الظاهر و المسافر الجامع بين البر و البحر هم أهل اللّٰه المحققون من الصوفية أصحاب الجمع و الوجود و الشهود و أعداؤهم ثلاثة عدو برهم صور التجلي و عدو بحرهم قصورهم على ما تجلى لهم أو تأويل ما تجلى لهم لا بد من ذلك فمن سلم من حكم التجلي الصوري و من القصور الذي يناقض المزيد و من التأويل فيما تجلى لهم فقد سلم من الأعداء و حمد طريقه و ربحت تجارته و كان من المهتدين فهذا و أمثاله يعطيه هذا الذكر و هو ذكر الالتباس من أجل ذكر التقوى لما في ذلك من تخيل تقوى اللّٰه و لهذا أبان اللّٰه عن تلك التقوى ما هي و فصل بينها و بين تقوى اللّٰه فقال في تمام الآية ﴿وَ اتَّقُونِ يٰا أُولِي الْأَلْبٰابِ﴾ [البقرة:197] و جعل المجاور لهم في تقوى اللّٰه ﴿لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنٰاحٌ﴾ [البقرة:198] برفع الحرج و السؤال فيما تزودوه في سفرهم من التقوى فإنه فضل على تقوى اللّٰه فإن الأصل تقوى اللّٰه فقال ﴿لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنٰاحٌ أَنْ تَبْتَغُوا فَضْلاً مِنْ رَبِّكُمْ﴾ [البقرة:198]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!