الفتوحات المكية

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و من ذلك «قوله بين قبري و منبري روضة من رياض الجنة» فاستحالت تربة في الدنيا في مساحة مقدرة معلومة و كذلك وادي محسر هو واد في النار استحال إلى الدنيا و آدم و حواء و إبليس من عالم الآخرة استحالوا إلى الدنيا ثم يستحيلون إلى الآخرة فتتغير عليهم الصور بحسب ما تعطيه طبيعة المكان المتوهم الذي تنقلهم إليه الحركة فتؤثر فيهم روحا كان أو جسما متحيزا كان أو غير متحيز و اللّٰه محركه على الدوام و لو لا نحن ما تميزت آخرة من دنيا فإن اللّٰه ما اعتبر من العالم في هذه الإضافة إلا هذا النوع الإنساني و الجان فجعل الظهور للانس من اسمه الظاهر و جعل البطون للجان من اسمه الباطن و ما عداهما فمسخر لهما كما هو في نفسه مسخر بعضه لبعضه من أجل الدرجات التي أنزلهم فيها فأعطتهم الدرجات صور ما استحالوا إليه لما نقلتهم الحركة الإلهية إليها و لما لم تظهر لأعياننا إلا هنا سميت هذه الدار دار الدنيا و الأولى و سميت الحياة الدنيا فإذا استحلنا إلى البرزخ و استحلنا من البرزخ إلى الصور التي يكون فيها النشر و البعث سميت تلك الآخرة و لا يزال الأمر في الآخرة في خلق جديد منها فيها أهل الجنة في الجنة و أهل النار في النار إلى ما لا يتناهى فلا نشاهد في الآخرة إلا خلقا جديدا في عين واحدة فالعالم متناه لا متناه و لما كان الأمر هكذا لذلك يرى الإنسان نفسه إذا هو نام في الجنة أو في القيامة أو في غير مكانه و بلده مما يعرفه أو يجهله و في غير صورته و في غير حاله فقد استحال في نفسه بحركته التي نقلته من اليقظة إلى النوم إلى صور يعهدها في أوقات و لا يعهدها في أوقات و إلى أحوال محمودة حسنة يسر بها و أحوال مذمومة قبيحة يتألم لها ثم تسرع إليه الاستحالة فيرجع إلى اليقظة إما باستيفاء المعنى الذي استحال إليه في النوم فلم يبق فيه ما يعطيه في تلك الاستحالة الخاصة و هو الذي ينتبه من غير سبب و هو الانتباه الطبيعي لما أخذت النفس للعين حقها من النوم الذي فيه راحتها فإن انتقل من النوم إلى اليقظة بسبب إما من جهة الحس و إما من أمر مفزع أو حركة ما مزعجة ظهرت منه في حال نومه فاستيقظ فإن وافق ذلك الأمر استيفاء العين حقها من النوم الطبيعي كان و إن لم يوافق و بقي من حق العين بقية لو لا ذلك السبب لاستوفاها فإنه يستوفيها في نوم آخر و لذلك بعض النائمين يطول نومهم في وقت و سبب طوله ما ذكرناه و أما قصر نومه فلأحد أمرين و هو ما ذكرناه إما لسبب يوقظه و إما لاستيفاء العين حقها في تلك النومة الخاصة من أجل المزاج الذي يكون عليه فإنه لا يستوي مزاج المتعوب و مزاج المستريح فالمتعوب يطلب من الراحة ما يزيل به ذلك التعب فيستغرقه النوم و يطول لأنه يحب استيفاء الراحة فلا يوقظه قبل الاستيفاء إلا أحد ثلاثة أشياء أو كلها أو بعضها على حسب ما يقع إما بأمر مزعج يراه في نومه أو يوقظه أحد من المتيقظين قصدا أو صيحة عظيمة أو حركة أو ما كان من هذه الأسباب في عالم الحس مقصودا لانتباهه أو غير مقصود بل يقع بالاتفاق و الأمر الثالث أن تكون النفس متعلقة الخاطر بقضاء شغل ما تحب أن تفعله فتنام على ذلك الخاطر و هو متعلق بذلك الأمر فيزعجه فينتبه قبل استيفاء حقه من النوم و ليس المقصود مما ذكرناه إلا تعريفك بأن العالم لا يخلو في كل نفس من الاستحالة و لو لا إن عين الجوهر من الذي يقبل هذه الاستحالة في نفسه واحد ثابت لا يستحيل من حيث جوهره ما علم حين يستحيل إلى أمر ما ما كان عليه من الحال قبل تلك الاستحالة غير إن الاستحالات قد يخفى بعضها و يدق و بعضها يكون ظاهرا تحس به النفس كاستحالة خواطرها و حركاتها الظاهرة و أحوالها و تدق و تخفى كاستحالتها في علومها و قواها و ألوان المتلونات بتجديد أمثالها فهي لا تدرك ذلك الأمر إلا من كان من أهل الكشف فإنه يدرك ذلك و أزال عنه الكشف ذلك اللبس الذي أعمى غيره عن إدراك هذا الأمر فإن قلت فهذه الصورة التي يستحيل إليها جواهر العالم ما هي قلنا الممكنات ليس غيرها هي في شيئية ثبوتها و هي قوله تعالى ﴿إِنَّمٰا قَوْلُنٰا لِشَيْءٍ إِذٰا أَرَدْنٰاهُ﴾ [النحل:40]



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