الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 6540 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«قد ورد أن حق اللّٰه أحق أن يقضى من حق الغير» فجعل كذلك حق النفس و فيه علم السبب الذي لأجله رتب هذه الحقوق هكذا و جعل لها هذه الحدود الإلهية و فيه علم صفة عذاب من يستر الحق عن أهله إذا توجه عليه كشفه لهم بالإيجاب الإلهي و فيه علم من عدل عن الحق بعد إقامة البينة عليه المقطوع بها ما الذي عدل به عن الحق و ما حكمه في هذا العدول عند اللّٰه و فيه علم عذاب أهل الحجب هل عذابهم بحجابهم أو بأمر آخر و فيه علم الجمع للتعريف بالأعمال المنسية عندهم و غير المنسية و من يتولى ذلك من الأسماء الإلهية و فيه علم تعلق علم اللّٰه الذي لا تدركه الأكوان بما في العالم بطريق المشاهدة و المجالسة ثم تأخير التعريف بما كان من الأكوان من الأعمال إلى زمان مخصوص معين عند اللّٰه و فيه علم النجوى الأخراوية و الدنياوية و فيه علم آداب المناجاة بين المتناجين و بما ذا يبدأ من يناجي ربه أو أحدا من أهل اللّٰه و فيه علم اتساع مجالس الذاكرين اللّٰه لكون اللّٰه جليسهم من الاسم الواسع و فيه علم مراتب الايمان من العلم و أي الدرجات أرفع و فيه علم المفلسين و ما الذي أفلسهم مع ما عندهم من الموجود و فيه علم رجوع اللّٰه على العبد متى رجع هل يختلف أو لا يختلف و لما ذا يرجع ذلك الاختلاف إن كان مختلفا هل للراجع أو لحال المرجوع إليه و فيه علم ما ينتجه التولي عن الذكر من الغضب الإلهي و فيه علم ما يغني و ما لا يغني و فيه تفرق الأحزاب من أي حقيقة تفرقوا من الحقائق الإلهية و فيه علم الوجوب الإلهي بما ذا تعلق و فيه علم من ترك أحباه لما ذا تركهم و ما حليتهم و صفتهم و فيه علم البقاء و الفوز و النجاة و كل علم من هذه العلوم الإلهية من الاسم اللّٰه لا من غيره من الأسماء و لا تجد ذلك إلا في هذا المنزل خاصة فإنه منزل مخصوص بحكم اللّٰه دون سائر الأسماء مع مشاركة بعض الأسماء فيه فهذا بعض ما يحوي عليه هذا المنزل من العلوم عيناها لك لترتفع الهمة منك إلى نيلها فتح مكاشفة من اللّٰه ثم نرجع إلى الكلام على بعض ما يحوي عليه هذا المنزل فنقول إن اللّٰه قال في كتابه إنه



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!