الفتوحات المكية

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يعطيك خيرا بإحسان يجود به *** عليك فهو الذي إن شاء لم يجد

[أن كل ما سوى اللّٰه أرواح مطهرة منزهة]

اعلم فهمك اللّٰه أن كل ما سوى اللّٰه أرواح مطهرة منزهة موجدها و خالقها و هي تنقسم إلى مكان و إلى متمكن و المكان ينقسم إلى قسمين مكان يسمى سماء و مكان يسمى أرضا و المتمكن فيهما ينقسم إلى قسمين إلى متمكن فيه و إلى متمكن عليه فالمتمكن فيه يكون بحيث مكانه و المتمكن عليه لا يكون بحيث مكانه و هذا حصر كل ما سوى اللّٰه و كل ذلك أرواح في الحقيقة أجسام و جواهر في الحق المخلوق به و هذه الأرواح على مراتب في التنزيه تسمى مكانة و ما من منزه لله تعالى إلا و تنزيهه على قدر مرتبته لأنه لا ينزه خالقه إلا من حيث هو إذ لا يعرف إلا نفسه فيثمر له ذلك التنزيه عند اللّٰه مكانة يتميز بها كل موجود عن غيره و هذا المنزل يحتوي على تنزيه الأرواح المتمكنة لا المكانية و سيرد منزل في هذه المنازل نذكر فيه تنزيه المكان و المتمكن معا فكان هذا المنزل يحتوي على نصف العالم من حيث ما هو منزه ثم إن اللّٰه تعالى عاد بالمكانة على هذا المنزه بأن كان الحق مجلاه فرأى نفسه و رتبته فسبح على قدر ما رأى فإذا هو نفسه لا غيره و ذلك أن الحق أسدل بينه و بين عباده حجاب العزة فوقف التنزيه دونه فعلم إن الحق لا يليق به تنزيه خلقه و أن حجاب العزة أحمى و قهرها أغلب ثم رأى من سواه من العارفين بالله المنزهين بنعوت السلوب على مراتب و قد أقر الجميع منهم بأنهم كانوا غالطين في محل تنزيههم و أن تنزيههم ما خرج عنهم و ذلك لحكمته التي سرت في خلقه فكان ذلك تنزيه الحكمة لا غيره و لو لا ستر حجاب العزة ما عرفوا ذلك و من هذا الحجاب ظهر الكفر في العالم و صارت المعرفة خبرا بما وراء هذا الحجاب فظهر الايمان في العالم بين الستر و المؤمن فالكافر الذي هو الساتر أقرب من أجل الكفر فإن الستر يرى المستور به و المستور عنه و هو صفة الكافر و المؤمن دون هذا الستر فمقامه الحجاب قال تعالى ﴿وَ مٰا كٰانَ لِبَشَرٍ أَنْ يُكَلِّمَهُ اللّٰهُ إِلاّٰ وَحْياً أَوْ مِنْ وَرٰاءِ حِجٰابٍ﴾ [الشورى:51]



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