الفتوحات المكية

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فالرخص مما تصدق اللّٰه بها على عباده و قد أجمعنا على تقرير حكم المجتهد و على تقليد العامي له في ذلك الحكم لأنه عنده عن دليل شرعي سواء كان صاحب قياس أو غير قائل به فتلك الرخصة التي رآها الشافعي في مذهبه على ما اقتضاه دليله قد قررها الشرع فيمنع المفتي من المالكية المالكي المذهب أن يأخذ برخصة الشافعي التي تعبده بها الشارع و إنما أضفناها إلى الشارع لأن الشرع قررها بمنعه مما يقتضيه الدليل في الأخذ به بأمر لا يقتضيه الدليل الذي لا أصل له و هو ربط الرجل نفسه بمذهب خاص لا يعدل عنه إلى غيره و يحجر عليه ما لم يحجر الشرع عليه و هذا من أعظم الطوام و أشق المكلف على عباد اللّٰه فالذي وسع الشرع بتقرير حكم المجتهدين من هذه الأمة ضيقه عوام الفقهاء و أما الأئمة مثل أبي حنيفة و مالك و أحمد بن حنبل و الشافعي فحاشاهم من هذا ما فعله واحد منهم قط و لا نقل عنهم إنهم قالوا لأحد اقتصر علينا و لا قلدني فيما أفتيتك به بل المنقول عنهم خلاف هذا رضي اللّٰه عنهم*

[الفرق بين تعلق علمه سبحانه بما يسره العبد في نفسه و بين ما يبديه و يظهره]

و مما يتضمنه هذا المنزل الفرق بين تعلق علمه سبحانه بما يسره العبد في نفسه و بين ما يبديه و يظهره و هل يرجع ذلك إلى نسبة واحدة أو نسبتين و يتعلق بهذا الباب ما يريده الحق «بقوله تعالى من ذكرني في نفسه ذكرته في نفسي و من ذكرني في ملأ ذكرته في ملأ خير منهم» فهاتان حالتان في الذكر و العلم فاعلم إن للحق سبحانه غيبا و مظهرا فبما هو غيب له الاسم الباطن و هو ذكره عبده في نفسه و علمه بما يسره و مع ذلك الاسم يكون سر العبد الذي يعلمه الحق و ذكر النفس الذي يذكر العبد به ربه و بما له المظهر من الاسم الظاهر و هو ذكره تعالى عبده في ملأ من ملائكته أو ملأ الأسماء الإلهية و علمه بما يبديه العبد في عالم الشهادة و مع ذلك الاسم يكون علانية العبد التي يعلمها الحق و ذكر العلانية التي يذكر العبد به ربه و أما العلم بما هو أخفى من السر فهو ما لا يعلمه إلا اللّٰه وحده لا علم لهذا العبد به و لا يمكن أن يعلمه إلا اللّٰه و هو علمه بنفسه و ما عدا هذا العلم فهو إما علم سره أو علم علانية فمتعلق العلم ثلاثة أشياء الجهر و السر و ما هو أخفى من السر و متعلق الذكر أمران ذكر الملإ و هو نوعان ملأ الأسماء و ملأ الملائكة و الأمر الآخر ذكر النفس فتساوي الذكر مع العلم في التقسيم*

[إن اللّٰه قد أودع في الإنسان علم كل شيء]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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