الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فجعل التبديل في عين السيئة و هو ما ذكرناه و لقد أخبرني عبد الكريم بن وحشي المصري و كان من الرجال بمكة رحمه اللّٰه سنة تسع و تسعين و خمسمائة قال لي ركبت البحر من جدة نطلب الديار المصرية فلما مخرنا جئنا ليلة و نحن نجري في وسط البحر و قد نام أهل المركب فإذا شخص من الجماعة قد قام يريد قضاء الحاجة فزلقت رجله و وقع في البحر و أخذته الأمواج فسكت الرائس و ما تكلم و كانت الريح طيبة فما شعر رائس المركب إلا و الرجل يجيء على وجه الماء حتى دخل المركب و صحبته طائر كبير فلما وصل إلى المركب طار الطائر و نزل بجامور الصاري على رأس القرية ثم رآه قد مد منقاره إلى إذن ذلك الرجل كأنه يكلمه ثم طار فلم يقل له الرائس شيئا حتى إذا كان في وقت آخر من النهار أخذه الرائس و أكرمه و سأله الدعاء فقال له الرجل ما أنا من القوم الذين يسأل منهم الدعاء فقال له الربان رأيتك البارحة و ما جرى منك فقال يا أخي ليس الأمر كما ظننت و لكني لما وقعت في البحر و أخذتني الأمواج تيقنت بالهلاك و علمت إن الاستغاثة بكم لا تفيد فقلت ذلك تقدير العزيز العليم مستسلما لقضاء اللّٰه فما شعرت إلا و طائر قد قبض علي و أقامني من بين الأمواج و حملني على موج البحر إلى أن أدخلني المركب كما رأيت فتعجبت من صنع اللّٰه و بقيت أتطلع إلى الطائر و أقول يا ليت شعري من يكون هذا الطائر الذي جعله اللّٰه سبب نجاتي و حياتي فمد الطائر منقاره من أعلى الصاري إلى أذني و قال لي أنا كلمتك ﴿ذٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ﴾ [الأنعام:96] و به سميت فكان اسم ذلك الطائر ﴿ذٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ﴾ [الأنعام:96]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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