الفتوحات المكية

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فكن برب العلي غنيا *** و عامل الحق بالوفاء

و من هذا المنزل تعلم يا بنى ما أكنته القلوب من الأمور و ما يجري فيها من الخواطر و ما تحدث به نفوسها على طريق الإحصاء لها فيما مضى حتى إن المتحقق بهذا المنزل يعرف من الشخص جميع ما تضمنه قلبه و ما تعلقت به إرادته من حين ولادته و حركته لطلب الثدي إلى حين جلوسه بين يديه مما لا يعرفه ذلك الشخص من نفسه لصغره و لما طرأ عليه من النسيان و عدم الالتفات لكل ما يطرأ في قلبه و ما تحدثه به نفسه لقدم الزمان فيعرفه صاحب هذا المنزل منه معرفة صحيحة لا يشك و لا يرتاب فيها لا من نفسه و لا من كل من هو بين يديه أو حاضر في خاطره و هو حال يطرأ على العبد و هذا المنزل قد سمعنا من أحوال أبي السعود بن الشبل أنه كان له حدثنا صاحبنا أبو البدر رحمه اللّٰه أن الشيخ عبد القادر ذكر بين يدي أبي السعود و أطنب في ذكره و الثناء عليه و كان القائل قصد به تعريف الشيخ أبي السعود و الحاضرين بمنزلة عبد القادر و أفرط فقال له الشيخ أبو السعود كم تقول أنت تحب أن تعرفنا بمنزلة عبد القادر كالمنتهر له و اللّٰه إني لا عرف حال عبد القادر كيف كان مع أهله و كيف هو الآن في قبره و هذا لا يعلم إلا من هذا المنزل و لكن لا يحصل له هذا التحصيل الكامل إلا في الرجوع من الحق إلى رؤية المخلوقين بعين اللّٰه و تأييده لا بعينه و قوته و من هذا المنزل أيضا يعلم كم حشر يحشر فيه الإنسان فاعلم إن الروح الإنساني أوجده اللّٰه حين أوجده مدبرا لصورة طبيعية حسية له سواء كان في الدنيا أو في البرزخ أو في الدار الآخرة أو حيث كان فأول صورة لبستها الصورة التي أخذ عليه فيها الميثاق بالإقرار بربوبية الحق عليه ثم إنه حشر من تلك الصورة إلى هذه الصورة الجسمية الدنياوية و حبس بها في رابع شهر من تكوين صورة جسده في بطن أمه إلى ساعة موته فإذا مات حشر إلى صورة أخرى من حين موته إلى وقت سؤاله فإذا جاء وقت سؤاله حشر من تلك الصورة إلى جسده الموصوف بالموت فيحيا به و يؤخذ بأسماع الناس و أبصارهم عن حياته بذلك الروح إلا من خصه اللّٰه تعالى بالكشف على ذلك من نبي أو ولي من الثقلين و أما سائر الحيوان فإنهم يشاهدون حياته و ما هو فيه عينا ثم يحشر بعد السؤال إلى صورة أخرى في البرزخ يمسك فيها بل تلك الصورة هي عين البرزخ و النوم و الموت في ذلك على السواء إلى نفخة البعث فيبعث من تلك الصورة و يحشر إلى الصورة التي كان فارقها في الدنيا إن كان بقي عليه سؤال فإن لم يكن من أهل ذلك الصنف حشر إلى الصورة التي يدخل بها الجنة و المسئول يوم القيامة إذا فرغ من سؤاله حشر في الصورة التي يدخل بها الجنة أو النار و أهل النار كلهم مسئولون فإذا دخلوا الجنة و استقروا فيها ثم دعوا إلى الرؤية و بادروا حشروا في صورة لا تصلح إلا للرؤية فإذا عادوا حشروا في صورة تصلح للجنة و في كل صورة ينسى صورته التي كان عليها و يرجع حكمه لي حكم الصورة التي انتقل إليها و حشر فيها فإذا دخل سوق الجنة و رأى ما فيه من الصور فآية صورة رآها و استحسنها حشر فيها فلا يزال في الجنة دائما يحشر من صورة إلى صورة إلى ما لا نهاية له ليعلم بذلك الاتساع الإلهي فكما لا يتكرر عليه صور التجلي كذلك يحتاج هذا المتجلي له أن يقابل كل صورة تتجلى له بصورة أخرى تنار إليه في تجليه فلا يزال يحشر في الصور دائما يأخذها من سوق الجنة و لا يقبل من تلك الصور التي في السوق و لا يستحسن منها إلا ما يناسب صورة التجلي الذي يكون له في المستقبل لأن تلك الصورة هي كالاستعداد الخاص لذلك التجلي فاعلم هذا فإنه من لباب المعرفة الإلهية و لو تفطنت لعرفت أنك الآن كذلك تحشر في كل نفس في صورة الحال التي أنت عليها و لكن يحجبك عن ذلك رؤيتك المعهودة و إن كنت تحس بانتقالك في أحوالك التي عليها تتصرف في ظاهرك و باطنك و لكن لا تعلم أنها صور لروحك تدخل فيها في كل آن و تحشر فيها و يبصرها العارفون صورا صحيحة ثابتة ظاهرة العين و هذا المنزل منزل الخبرة و المهيمن عليه الاسم الرب و هذه الصور إنما تطلبها الخبرة لإقامة الحجة عليها في موطن التكليف فالعارف يقدم قيامته في موطن التكليف التي يؤول إليها جميع الناس فيزن على نفسه أعماله و يحاسب نفسه هنا قبل الانتقال و قد حرض الشرع على ذلك «فقال حاسبوا أنفسكم قبل إن تحاسبوا»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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