الفتوحات المكية

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فوصفه بأنه ما رآها و لا قارب رؤيتها فإنه نفى القرب بدخول لم على يكاد و هو حرف نفي و جزم يدخل على الأفعال المضارعة للأسماء فينفيها و يتعلق بهذا المنزل علم الزجر و الردع لمن قال من الناس إنه قد علم ذات الحق أنه لا ينكشف له جهله بما زعم أنه عالم به إلا في الدار الآخرة فيعلم هناك أن الأمر على خلاف ما كان يعتقده من علمه و أنه لا يعلم دنيا و لا آخرة قال تعالى ﴿وَ بَدٰا لَهُمْ مِنَ اللّٰهِ مٰا لَمْ يَكُونُوا يَحْتَسِبُونَ﴾ [الزمر:47] فعم فبدا لكل طائفة تعتقد أمرا ما مما الأمر ليس عليه نفي ذلك المعتقد و ما تعرض في الآية بما انتفى ذلك هل بالعجز أو بمعرفة النقيض و كلا الأمرين كائن في الدار الآخرة كمن يقول بإنفاذ الوعيد لمن مات عاصيا على غير توبة فيغفر اللّٰه له يوم القيامة فقد بدا له من اللّٰه ما لم يكن يعلمه من التجاوز و زال علمه بالمؤاخذة فكل طائفة يبدو لها من اللّٰه بحسب مسألتها فلو كان العلم في نفس الأمر علم يقين لما تبدل و إنما هو حسبان و ظن قد احتجب عن صاحبه بصورة علم فهو يقول إنه يعلم و الحق يقول له تظن و تحسب و أين مقام من مقام فما كل أمر يعلم و لا كل أمر يجهل فاعلم العلماء من علم ما يعلم أنه يعلم و ما لا يعلم أنه لا يعلم «قال صلى اللّٰه عليه و سلم لا أحصي ثناء عليك» فقد علم أنه ثم أمر لا يحاط به و قال الصديق العجز عن درك الإدراك إدراك أي أنه أدرك أن ثم أمرا يعجز عن إدراكه فهذا علم لا علم فيعلم الإنسان يوم القيامة عجز فكره عن إدراك ما حسب أنه أدركه غير أنه معذب بفكره بنار اصطلامه فإن حجة الشرع عليه قائمة إذ قد أبان له و أعرب عما ينبغي له أن يفكر فيه كما قال ﴿أَ وَ لَمْ يَتَفَكَّرُوا مٰا بِصٰاحِبِهِمْ مِنْ جِنَّةٍ﴾ [الأعراف:184]



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