الفتوحات المكية

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فأحرى قديما فألهمها فجورها عملا أو تركا لمجيئه على يد شيطان و تقواها عملا أو تركا لمجيئه على يد ملك فمن راقب خواطره من طرقها فقد أفلح فإنه يعلم من يأخذها و من يتعرض إليها من القاعدين لها كل مرصد و من غفل عن طرقها و ما شعر بها حتى وجدها في المحل كما تجدها العامة عمل بمقتضاها و هو عمل الجاهل بالشيء فإن كان خيرا فبحكم المصادفة و إن كان شرا فكذلك لأن الخاطر الأول الذي أتاه بالعلم بمن يأتي بعده من الخواطر و على يد من يأتيه لم يشعر به و لا علمه و لا شاهده ففاته حكمه فلما فجئته هذه الخواطر العملية على حين غفلة و عدم تيقظ و مراقبة لطرقها عمل بمقتضاها فكان خيره و شره مصادفة و رأيت ابن الحجازي المحتسب بمدينة فاس و لم يكن صاحب علم بالشريعة يوفقه اللّٰه لإصابة الحكم و أعرف من صلاحه أنه ما فاتته تكبيرة الإحرام خلف الإمام في الصلوات كلها بجامع القرويين إلى أن مات فكانت أحكامه في حسبته تجري على السداد إلها ما من اللّٰه فكان يقول إني لأعجب من أمري ما اشتغلت بعلم أحكام الشريعة و أو أفق حكم الشرع في جميع أحكامي و لم يقدر أحد من علماء الشريعة يأخذ عليه في حكم لم يقل به مجتهد هذا وحده رأيته من عامة الناس معتنى به و لم يكن من أهل الطريق بل كان حريصا على الدنيا مكبا عليها كسائر عامة الناس لكن كان منور الباطن و لا يشعر بذلك و الخواطر كلها خطابات إلهية ما هي تجليات و لهذا ينشئها اللّٰه صورا تحدث في العماء الذي هو النفس الإلهي فمن شهدها و لا يرزقه اللّٰه علما بما ذكرناه يتخيل أن الخواطر تجل إلهي لما يرى من الصورة و هذا هو السبب في تسميتها خواطر و إنها لا تثبت كما لا تثبت صورة الحرف في الوجود بعد نطق اللسان به فما له سوى زمان النطق به ثم ينعدم و يبقى في فهم السامع مثال صورته فيتخيل إن الخاطر باق كما تخيل ذو النون في قوله ﴿أَ لَسْتُ بِرَبِّكُمْ﴾ [الأعراف:172]



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