الفتوحات المكية

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و هذا هو قول الحقيقة بعينه فالشريعة هي الحقيقة فالحقيقة و إن أعطت أحدية الألوهة فإنها أعطت النسب فيها فما أثبتت إلا أحدية الكثرة النسبية لا أحدية الواحد فإن أحدية الواحد ظاهرة بنفسها و أحدية الكثرة عزيزة المنال لا يدركها كل ذي نظر فالحقيقة التي هي أحدية الكثرة لا يعثر عليها كل أحد و لما رأوا أنهم عاملون بالشريعة خصوصا و عموما و رأوا أن الحقيقة لا يعلمها إلا الخصوص فرقوا بين الشريعة و الحقيقة فجعلوا الشريعة لما ظهر من أحكام الحقيقة و جعلوا الحقيقة لما بطن من أحكامها لما كان الشارع الذي هو الحق قد تسمى بالظاهر و الباطن و هذان الاسمان له حقيقة فالحقيقة ظهور صفة حق خلف حجاب صفة عبد فإذا ارتفع حجاب الجهل عن عين البصيرة رأى أن صفة العبد هي عين صفة الحق عندهم و عندنا إن صفة العبد هي عين الحق لا صفة الحق فالظاهر خلق و الباطن حق و الباطن منشا الظاهر فإن الجوارح تابعة منقادة لما تريد بها النفس و النفس باطنة العين طاهرة الحكم و الجارحة ظاهرة الحكم لا باطن لها لأنه لا حكم لها فينسب الاعوجاج و الاستقامة للماشي بالممشي به لا إلى من مشى به و الماشي بالخلق إنما هو الحق و ذكر أنه على صراط مستقيم فالاعوجاج قد يكون استقامة في الحقيقة كاعوجاج القوس فاستقامته التي أريد لها اعوجاجه فما في العالم إلا مستقيم لأن الآخذ بناصيته هو الماشي به و هو على صراط مستقيم فكل حركة و سكون في الوجود فهي إلهية لأنها بيد حق و صادرة عن حق موصوف بأنه على صراط مستقيم بأخبار الصادق فإن الرسل لا تقول على اللّٰه إلا ما تعلمه منه فهم أعلم الخلق بالله و ليس للكون معذرة أقوى من هذه فمن رحمة الرسل بالخلق تنبيه الخلق على مثل هذا و لما حكاها الحق عنه يسمعنا مقالته علمنا إن ذلك من رحمته بنا حيث عرفنا بمثل هذا فكان تعريفه إيانا بما قاله رسوله بشرى من اللّٰه لنا من قوله ﴿لَهُمُ الْبُشْرىٰ فِي الْحَيٰاةِ الدُّنْيٰا﴾ [يونس:64] و كانت البشرى من كلمات اللّٰه و ﴿لاٰ تَبْدِيلَ لِكَلِمٰاتِ اللّٰهِ﴾ [يونس:64]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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