الفتوحات المكية

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فالله لا يزال خلاقا إلى غير نهاية فينا فالعلوم إلى غير نهاية و ليس غرض القوم من العلم إلا ما يتعلق بالله كشفا و دلالة و كلمات اللّٰه لا تنفد و هي أعيان موجوداته فلا يزال طالب العلم عطشانا أبدا لا رى له فإن الاستعداد الذي يكون عليه يطلب علما يحصله فإذا حصل أعطاه ذلك العلم استعداد العلم آخر كوني أو إلهي فإذا علم بما حصل له أن ثم أمرا يطلبه استعداده الذي حدث له بالعلم الحاصل عن الاستعداد الأول يعطش إلى تحصيل ذلك العلم فطالب العلم كشارب ماء البحر كلما ازداد شربا ازداد عطشا و التكوين لا ينقطع فالمعلومات لا تنقطع فالعلوم لا تنقطع فأين الري فما قال به إلا من جهل ما يخلق فيه على الدوام و الاستمرار و من لا علم له بنفسه لا علم له بربه قال بعض العارفين النفس بحر لا ساحل له يشير إلى عدم النهاية و كلما دخل في الوجود أو اتصف بالوجود فهو متناه و ما لم يدخل في الوجود فلا نهاية له و ليس إلا الممكنات فلا يصح أن يعلم إلا محدث فإن المعلوم لم يكن ثم كان ثم يكون آخر أيضا فلو اتصف المعلوم بالوجود لتناهى و اكتفى به فلا تعلم من اللّٰه إلا ما يكون منه و يوجده فيك إما إلهاما أو كشفا عن حدوث تحل و هذا كله معلوم محدث فلا علم لأحد إلا بمحدث ممكن مثله و الممكنات لا تتناهى لأنها غير داخلة في الوجود دفعة واحدة بل توجد مع الآنات فلا يعلم اللّٰه إلا اللّٰه و لا يعلم الكون المحدث إلا محدثا مثله يكونه الحق فيه قال تعالى ﴿مٰا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنْ رَبِّهِمْ مُحْدَثٍ﴾ [الأنبياء:2] و هو كلامه و حدث فيهم فتعلق علمهم به فما تعلق إلا بمحدث و ذلك الذي يتخيله من لا علم له من أنه علم اللّٰه فلا صحة له لأنه لا يعلم الشيء إلا بصفته النفسية الثبوتية و علمنا بهذا محال فعلمنا بالله محال فسبحان من لا يعلم إلا بأنه لا يعلم فالعالم بالله لا يتعدى رتبته و يعلم ما يعلم أنه ممن لا يعلم ﴿وَ اللّٰهُ يَهْدِي مَنْ يَشٰاءُ إِلىٰ صِرٰاطٍ مُسْتَقِيمٍ﴾ [البقرة:213]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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