الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

إن الرسول من أجل الشكر قد ورمت *** أقدامه و علاه الجهد و التعب

[أن المقامات و هي استيفاء الحقوق المرسومة شرعا على التمام]

اعلم أن المقامات مكاسب و هي استيفاء الحقوق المرسومة شرعا على التمام فإذا قام العبد في الأوقات بما تعين عليه من المعاملات و صنوف المجاهدات و الرياضات التي أمره الشارع أن يقوم بها و عين نعوتها و أزمانها و ما ينبغي لها و شروطها التمامية و الكمالية الموجبة صحتها فحينئذ يكون صاحب مقام حيث أنشأ صورته كما أمر كما قيل له ﴿أَقِيمُوا الصَّلاٰةَ﴾ [البقرة:43] فأقاموا نشأتها صورة كاملة فخرجت طائرا ملكا روحا مقدسا فلم يكن له استقرار دون الحق ثم ينتقل هذا العبد إلى مقام آخر لينشتئ أيضا صورته و بهذا يكون العبد خلاقا هذا معنى المقام و لم يختلف أحد من أهل اللّٰه أنه ثابت غير زائل كما اختلفوا في الحال و ليس الأمر عندنا على إطلاق ما قالوه بل يحتاج إلى تفصيل في ذلك و ذلك لاختلاف حقائق المقامات فإنها ما هي على حقيقة واحدة فمن المقامات ما هو مشروط بشرط فإذا زال الشرط زال كالورع لا يكون إلا في المحظور أو المتشابه فإذا لم يوجد أحدهما أو كلاهما فلا ورع و كذلك الخوف و الرجاء و التجريد الذي هو قطع الأسباب و هو ظاهر التوكل عند العامة و من المقامات ما هو ثابت إلى الموت و يزول كالتوبة و مراعاة التكليفات المشرعة و من المقامات ما يصحب العبد في الآخرة إلى أول دخول الجنة كبعض المقامات المشروطة من الخوف و الرجاء و من المقامات ما يدخل معه الجنة كمقام الأنس و البسط و الظهور بصفات الجمال فالمقام هو ما يكون للعبد فيه إقامة و ثبات و هو عنده لا يبرح فإن كان مشروطا و جاء شرطه أظهره ذلك الوقت لوجود شرطه فهو عنده معد فلذلك قيل فيه إنه ثابت لا أنه يستعمل في كل وقت فافهم

(الباب الرابع و التسعون و مائة في معرفة المكان)



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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