الفتوحات المكية

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(فصل)الإيثار

أما الإيثار فليس للحق منه صفة إلا بوجه بعيد في ذكره سوء أدب بل ما هو حقيقة فتركه أولى و ما ذهب إليه إلا من لا علم له و لا أدب من أهل الشطح فلنقل إن الإيثار قد يكون عطاء محتاج لمحتاج و قد يكون على الخصاصة و مع الخصاصة أو توهم الخصاصة و أما في جانب الحق فهو إعطاؤه الجوهر الوجود لخلق عرض من الأعراض لتعقل الإرادة بإيجاده لا بإيجاد المحل فيوجد المحل تبعا ضرورة إذ من شرط وجود العرض وجود المحل و الجوهر محتاج فيا أعطاه الحق من خلق العرض فيه إذ لا يكون له وجود إلا بوجود عرض ما و سواء كان الجوهر متحيزا أو غير متحيز و مؤلفا مع غيره أو غير مؤلف فهذا عطاء على خصاصة مع خصاصة و أما على غير الخصاصة فهو اتصاف العبد في التخلق بالأسماء الإلهية و اتصاف الحق في نزوله بأوصاف المحدثات و هذا كله واقع قد ظهر حكمه في الوجود و تبين

(فصل)الصدقة

فقد ذكرنا ذلك في باب الزكاة و هي هاهنا تصدق الحق على العبد بإبقاء عينه في الوجود و بإيجاده أولا مع علمه بأنه إذا أوجده يدعي الألوهية و يقول ﴿أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلىٰ﴾ [النازعات:24] و لا بد من إيجاده لما سبق في العلم و الصدقة من العبد على الحق فإن العبد يجد في نفسه عزة الصورة و مع هذا يقر بالعبودة لعزة اللّٰه و أيضا هي ما يظهر من المحامد المحدثة التي لا تصح لله إلا بعد وجود المحدث و هو كل ما سوى اللّٰه و إنما سميت صدقة لأن العبد المختار في محامد اللّٰه في نفسه فإنه قال تعالى في حقه لما بين له السبيل إلى سعادته ﴿إِمّٰا شٰاكِراً وَ إِمّٰا كَفُوراً﴾ [الانسان:3] فإنه ذو اختيار في أفعاله و لهذا يصح منه القبول و الرد و يعاقب و يثاب و على هذا قام أصل الجزاء من اللّٰه تعالى لعباده

(فصل)عطاء الصلة

و أما عطاء الصلة فهي لذوي الأرحام حقا و خلقا «يقول تعالى الرحم شجنة من الرحمن من وصلها وصله اللّٰه و من قطعها قطعه اللّٰه» فنسبتها للحق نسبتها للعبد فالرحمن رحم لنا و نحن رحم للرحمن

(فصل)عطاء الهدية

و هو عطاء عن بيان و لهذا اشتركت في حروف الهدى لأنه بالهدى أهدى فهدية الحق للعبد نفسه و هدية العبد للحق رد تلك النفس إليه بخلعة تكسبه محبة ربه ﴿فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللّٰهُ﴾ [آل عمران:31]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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