الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

لأنها شكل دور *** و ما من الدور أسبق

ثم استيقظت.و حكى لي في هذه الرؤيا إني فرحت بجوابه فلما أكمل ذكره فرحت بهذه المبشرة التي رآها في حقي و بهيئة الاضطجاع و ذلك رقاد الأنبياء عليهم السلام و هي حالة المستريح الفارغ من شغله و المتأهب لما يرد عليه من أخبار السماء بالمقابلة فاعلم أن الصاد حرف من حروف الصدق و الصون و الصورة و هو كري الشكل قابل لجميع الأشكال فيه أسرار عجيبة فتعجبت من كشفه في نومه قرت عينه على حالتي التي ذكرتها للأصحاب بالأمس في المجلس ﴿فَغَفَرْنٰا لَهُ ذٰلِكَ وَ إِنَّ لَهُ عِنْدَنٰا لَزُلْفىٰ وَ حُسْنَ مَآبٍ﴾ [ص:25] حرف شريف عظيم أقسم عند ذكره بمقام جوامع الكلم و هو المشهد المحمدي في أوج الشرف بلسان التمجيد و تضمنت هذه السورة من أوصاف الأنبياء عليهم السلام و من أسرار العالم كله الخفية عجائب و آيات و هذه الرؤيا فيها من الأسرار على حسب ما في هذه السورة من الأسرار فهي تدل على خير كثير جسيم يناله الرائي و من ريئت له و كل من شوهد فيها من اللّٰه تعالى و يحصل لهما من بركات الأنبياء عليهم السلام المذكورين في هذه السورة و يلحق الأعداء من الكفار ما في هذه السورة من البؤس لا من المؤمنين نسأل اللّٰه لنا و لهم العافية في الدنيا و الآخرة فهذه بشرى حصلت و أسرار أرسلها الحق إلينا على يد هذا الرائي و ذكر لي الرائي صاحبنا أبو يحيى أنه لما استيقظ تمم على البيتين اللذين أنشدهما لي في النوم قريضا فسألته أن يرسل إلى به حتى أقيده في كتابي هذا عقيب هذه الرؤيا و في هذا الحرف فإن ذلك القريض من إمداد هذه الحقيقة الروحانية التي رآها في النوم فأردت أن لا أفصل بينهما فبعثت معه صاحبنا أبا عبد اللّٰه محمد بن خالد الصوفي التلمساني فجاءني بها و هي هذه

الصاد حرف شريف *** و الصاد في الصاد أصدق

قل ما الدليل أجده *** في داخل القلب ملصق

لأنها شكل دور *** و ما من الدور أسبق

و دل هذا بأني *** على الطريق موفق

حققت في اللّٰه قصدي *** و الحق يقصد بالحق



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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