الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

الخوض في كل أمر *** من الوجود عمايه

إلا إذا كنت فيه *** ذا عزة و عناية

(الخوض في آلائه عماية) قال إذا كنت أنت الآية عينها فأنت أقرب شيء إلى من أنت دليل عليه فإذا خضت في الآية فأنت دال لا دليل فزلت عن كونك آية فبعدت عن المقصود فحجبت فصرت في عماية فلا تخض فيك و انظر في ذاتك على الكشف حتى ترى بمن هي مرتبطة فذلك الذي ارتبطت به هو مدلولها و هي آية عليه للأجنبي الخائض فيك ما أنت آية لك و إن كنت آية لك يقول تعالى ﴿وَ إِذٰا رَأَيْتَ الَّذِينَ يَخُوضُونَ فِي آيٰاتِنٰا فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ﴾ [الأنعام:68] إشارة حسنة و نصيحة شافية ﴿حَتّٰى يَخُوضُوا فِي حَدِيثٍ غَيْرِهِ﴾ [النساء:140] فأضاف الآيات إليه فإن خضت فيها تعديت عنك إلى الجانب الآخر و الشأن في إن تكون أنت و هو أنت له و هو لك لا إن يكون هو لهو فلما ذا أوجدك و لا إن تكون أنت لأنت فاعلم

[السكونة تحت قضاء اللّٰه]

و من ذلك

أن الذي يسكن تحت القضا *** فإنه علامة في الرضاء

قد وسع الكل جمالا فما *** يعرض عنه السر لو أعرضا

السكون تحت القضا *** قد لا يكون عن الرضي

قال ما كل من سكن تحت قضاء اللّٰه يكون راضيا بما قضى عليه قد يكون الساكن مجبورا مقهورا إما لغفلة و إما لأمر من خارج فإذا رفع عنه القهر زال ما كان يدعيه من الرضي فأخفى اللّٰه كذب الكاذب بالقهر في التشبيه بالصادق فيرى كل واحد من الشخصين قد رضي و الواحد رضي طوعا و الآخر رضي كرها ﴿وَ لِلّٰهِ يَسْجُدُ مَنْ فِي السَّمٰاوٰاتِ وَ الْأَرْضِ طَوْعاً وَ كَرْهاً﴾ [الرعد:15] و لست أعني بالسماء هذه المشهودة المعلومة فهي إشارة إلى الرفع و الأرض إلى الخفض فأهل السماء يسجدون كرها و أهل الأرض يسجدون طوعا بسبب الأهلية فقد يكون في السماء من هو من أهل الأرض فيسجد طوعا و قد يكون في الأرض من هو من أهل السماء فيسجد كرها و هو علم ذوق فالساجد يعرف بأي صفة سجد فهو أهل لما تعطيه تلك الصفة و قال العبد مأمور بالرضى بالقضاء لا بكل مقضي به فاعلم ذلك فإنه دقيق

[لم يزل في تضليل من عصى اللّٰه و الرسول]

و من ذلك

لم يزل في ضلالة و عمى *** من عصى ربه من العلما



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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