الفتوحات المكية

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قال اللّٰه عز و جل ﴿وَ مٰا أُوتِيتُمْ مِنَ الْعِلْمِ إِلاّٰ قَلِيلاً﴾ [الإسراء:85] فكان شيخنا أبو مدين يقول إذا سمع من يتلو هذه الآية القليل أعطيناه ما هو لنا بل هو معار عندنا و الكثير منه لم نصل إليه فنحن الجاهلون على الدوام و «قال من هذا الباب خضر لموسى عليه السلام لما رأى الطائر الذي وقع على حرف السفينة و نقر في البحر بمنقاره أ تدري ما يقول هذا الطائر في نقرة في الماء قال موسى عليه السلام لا أدري قال يا موسى يقول هذا الطائر ما نقص علمي و علمك من علم اللّٰه إلا ما نقص من هذا البحر منقاري» و المراد المعلومات بذلك لا العلم فإن العلم لو تعدد أدى أن يدخل في الوجود ما لا يتناهى و هو محال فإن المعلومات لا نهاية لها فلو كان لكل معلوم علم لزم ما قلناه و معلوم أن اللّٰه يعلم ما لا يتناهى فعلمه واحد فلا بد أن يكون للعلم عين واحدة لأنه لا يتعلق بالمعلوم حتى يكون موجودا و ما هو ذلك العلم هل هو ذات العالم أو أمر زائد في ذلك خلاف بين النظار في علم الحق سبحانه و معلوم أن علم اللّٰه متعلق بما لا يتناهى فبطل أن يكون لكل معلوم علم و سواء زعمت أن العلم عين ذات العالم أو صفة زائدة على ذاته إلا أن تكون ممن يقول في الصفات إنها نسب و إن كنت ممن يقول إن العلم نسبة خاصة فالنسب لا تتصف بالوجود نعم و لا بالعدم كالأحوال فيمكن على هذا أن يكون لكل معلوم علم و قد علمنا إن المعلومات لا تتناهى فالنسب لا تتناهى و لا يلزم من ذلك محال كحدوث التعلقات عند ابن الخطيب و الاسترسال عند إمام الحرمين و بعد أن فهمت ما قررناه في هذه المسألة فقل بعد ذلك ما شئت من نسبة الكثرة للعلم و القلة فما وصف اللّٰه العلم بالقلة إلا العلم الذي أعطى اللّٰه عباده و هو قوله



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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