الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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(الباب الثامن و الخمسون)
في معرفة أسرار أهل الإلهام

المستدلين و معرفة علم إلهي فاض على القلب ففرق خواطره و شتتها

إذا أعطاك بالإلهام علما *** تحققه فأنت به سعيد

كمثل النحل مختلف المعاني *** قوي في مبانيه سديد

فتلقى طيبا عن طيب أصل *** و أنت لحالها أبدا شهيد

و في الأشجار و الشم الرواسي *** لها من فعلها قصر مشيد

فلا تعجزك للعلياء نحل *** و أنت السيد الندب الجليد

فمنك القصد خيرا و اختيارا *** كما لك في منازلك القصود

فحقق و التمس علما وحيدا *** كمثلك إنك الخلق الجديد

[معرفة اللّٰه من طريقى العقل و النقل]

اعلم أيدك اللّٰه بروح منه أن اللّٰه عزَّ وجلَّ أمرنا بالعلم بوحدانيته في ألوهيته غير أن النفوس لما سمعت ذلك منه مع كونها قد نظرت بفكرها و دلت على وجود الحق بالأدلة العقلية بل بضرورة العقل بعلم وجود الباري تعالى ثم دلت على توحيد هذا الموجود الذي خلقها و أنه من المحال أن يوجد واجبا الوجود لنفسه و لا ينبغي أن يكون إلا واحدا ثم استدلوا على ما ينبغي أن يكون عليه من هو واجب الوجود لنفسه من النسب التي ظهر عنه بها ما ظهر من الممكنات و دل على إمكان الرسالة ثم جاء الرسول و أظهر من الدلائل على صدقه أنه رسول من اللّٰه إلينا فعرفنا بالأدلة العقلية أنه رسول اللّٰه فلم نشك و قام لنا الدليل العقلي على صدق ما يخبر به فيما ينسب إليه و رآه قد أتى في أخباره عنه تعالى بنسب و أمور كان الدليل العقلي يحيلها و يرمي بها فتوقف العقل و أنهم معرفته و قدح في دليله هذا الإنباء الإلهي بما نسبه لنفسه و لا يقدر على تكذيب المخبر

[معرفة من طريق النقل ليست عين معرفة اللّٰه من طريق العقل]

ثم كان من بعض ما قال له هذا الشارع اعرف ربك و هذا العاقل لو لم يعلم ربه الذي هو الأصل المعول عليه ما صدق هذا الرسول فلا بد أن يكون العلم الذي طلب منه الرسول أن يعلم به ربه غير العلم الذي أعطاه دليله و هو أن يتعمل في تحصيل علم من اللّٰه بالله يقبل به على بصيرة هذه الأمور التي نسبها اللّٰه إلى نفسه و وصف نفسه بها التي أحالها العقل بدليله فانقدح له بتصديقه الرسول إن ثم وراء العقل و ما يعطيه بفكره أمرا آخر يعطي من العلم بالله ما لا تعطيه الأدلة العقلية بل تحيله قولا واحدا

[المعرفة النقلية وراء طور العقل]

فإذا علمه بهذه القوة التي عرف أنها وراء طور العقل هل يبقى له الحكم فيما كان يحيله العقل من حيث فكره أولا على ما كان عليه أم لا يبقى فإن لم يبق له الحكم بأن ذلك محال فلا بد أن يعثر على الوجه الذي وقع له منه الغلط بلا شك و أن ذلك الذي اتخذه دليلا على إحالة ذلك على اللّٰه لم يكن دليلا في نفس الأمر و إذا كان هذا فما ذلك الأمر مما هو وراء طور العقل فإن العقل قد يصيب و قد يخطئ و إن بقي للعقل بعد كشفه و تحقيقه لصحة هذا الأمر الذي نسبه اللّٰه لنفسه و وصف به نفسه و قبلته عقول الأنبياء و قبله عقل هذا المكاشف بلا شك و لا ريب و مع هذا فإنه يحكم على اللّٰه بأن ذلك الأمر محال عقلا من حيث فكره لا من حيث قبوله و حينئذ يصح أن يكون ذلك المقام وراء طور العقل من جهة أخذه عن الفكر لا من جهة أخذه عن اللّٰه

[عجبا للعقل يتبع فكره و لا يتبع ربه]

هذا و من أعجب الأمور عندنا إن يكون الإنسان يقلد فكره و نظره و هو محدث مثله و قوة من قوى الإنسان التي خلقها اللّٰه فيه و جعل تلك القوة خديمة للعقل و يقلدها العقل فيما تعطيه هذه القوة و يعلم أنها لا تتعدى مرتبتها و أنها تعجز في نفسها عن إن يكون لها حكم قوة أخرى مثل القوة الحافظة و المصورة و المتخيلة و القوي التي هي الحواس من لمس و طعم و شم و سمع و بصر و مع هذا القصور كله يقلدها العقل في معرفة ربه و لا يقلد ربه فيما يخبر به عن نفسه في كتابه و على لسان رسوله صلى اللّٰه عليه و سلم فهذا من أعجب ما طرأ في العالم من الغلط

[حدود آفاق العقل من حيث قواه الظاهرة و الباطنة]

و كل صاحب فكر تحت حكم هذا الغلط بلا شك إلا من نور اللّٰه بصيرته فعرف إن اللّٰه قد ﴿أَعْطىٰ كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ﴾ [ طه:50] فأعطى السمع خلقه فلا يتعدى إدراكه و جعل العقل فقيرا إليه يستمد منه معرفة الأصوات و تقطيع الحروف و تغيير الألفاظ و تنوع اللغات فيفرق بين صوت الطير و هبوب الرياح و صرير الباب و خرير الماء و صياح الإنسان و يعار الشاة و ثؤاج الكباش و خوار البقر و رغاء الإبل و ما أشبه هذه الأصوات كلها و لبس في قوة لعقل من حيث ذاته إدراك


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