الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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منقول بين معقول و غير معقول و ليس يدرك هذه الأغوار إلا أهل الأسرار و الأنوار و أولو البصائر و الأبصار فمن انفرد بسر بلا نور أو بنور بلا سر أو ببصيرة دون بصر أو ببصر دون بصيرة أو بظاهر دون باطن أو بباطن دون ظاهر كان لما انفرد به و لم يحصل على كمال و إن اتصف به و إن كان تاما فيما هو عليه و لكن الكمال هو المطلوب لا التمام فإن التمام في الخلق و الكمال فيما يستفيده التام و يفيده و متى لم تحصل له هذه الدرجة مع تمامه فإن اللّٰه أعطى كل شيء خلقه فقد تم ثم هدى لاكتساب الكمال فمن اهتدى فقد كمل و من وقف مع تمامه فقد حرم رزقنا اللّٰه و إياكم الفوز و الوصول إلى مقام العجز إنه الولي المحسان

«الوصل الثاني و العشرون»من خزائن الجود و هذه خزانة الفترات

فتوهم انقطاع الأمور و ما هي الأمور منقطعة و ما يصح أن تنقطع لأن اللّٰه لا يزال العالم محفوظا به فلا يزل حافظا له فلو انقطع الحفظ لزال العالم فإن اللّٰه ما هو غني عن العالم إلا لظهوره بنفسه للعالم فاستغنى إن يعرف بالعالم فلا يدل عليه الغير بل هو الدليل على نفسه بظهوره لخلقه فمنهم من عرفه و ميزه من خلقه و منهم من جعله عين خلقه و منهم من حار فيه فلم يدر أ هو عين خلقه أم هو متميز عنه و منهم من علم أنه متميز عن الخلق و الخلق متميز عنه و لكن لا يدري بما ذا تميز خلق عن حق و لا حق عن خلق و لهذا حار أبو يزيد فإنه علم إن ثم في الجملة تمييزا و ما عرف ما هو حتى قال له الحق التمييز في الذلة و الافتقار فحينئذ سكن و ما قال له النصف الآخر من التمييز و هو الغني الإلهي عن العالم فإن قلت الذلة و الافتقار يغني قلنا في الشاهد لا يغني لما نشاهده من الذلة لذليل و من الافتقار لفقير فإن اللّٰه قد جعل العالم على مراتب و درجات مفتقرا بعضه إلى بعض و رفع ﴿بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجٰاتٍ لِيَتَّخِذَ بَعْضُهُمْ بَعْضاً سُخْرِيًّا﴾ [الزخرف:32] فجعل العالم فاضلا مفضولا و لما كان الأمر الحق فيما نبه اللّٰه عليه أبا يزيد نبهنا بذلك على علم قوله ﴿يٰا أَيُّهَا النّٰاسُ أَنْتُمُ الْفُقَرٰاءُ إِلَى اللّٰهِ وَ اللّٰهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ﴾ [فاطر:15] أي المثنى عليه بكل ما يفتقر إليه فالعالم كله أسماؤه الحسنى و صفاته العليا فلا يزال الحق متجليا ظاهرا على الدوام لأبصار عباده في صور مختلفة عند افتقار كل إنسان إلى كل صورة منها فإذا استغنى من استغنى عن تلك الصورة فهي عند ذلك المستغني خلق فإذا عاد افتقاره إليها فهي حق و اسمها هو اسم الحق و في الظاهر لها فيتخيل المحجوب أنه افتقر إليها و ذل من أجل حاجته إليها و ما افتقر و ذل إلا لله الذي ﴿بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ﴾ [المؤمنون:88] فالناس في واد و العلماء بالله في واد و أما التفاضل الظاهر في العالم فمجهول عند بعض الناس و معلوم عند بعضهم و منهم المخطئ فيه و المصيب و ذلك أن العالم قسمه اللّٰه في الوجود بين غيب و شهادة و ظاهر و باطن و أول و آخر فجعل الباطن و الآخر و الغيب نمطا واحدا و جعل الأول و الظاهر و الشهادة نمطا آخر فمن الناس من فضل النمط الذي فيه الأولية و من الناس من فضل النمط الذي فيه الآخرية و من الناس من سوى مطلقا و من الناس من قيد و هم أهل اللّٰه خاصة فقالوا النمط الذي فيه الآخرية في حق السعداء خير و في حق الأشقياء ما هو خير و إن أهل اللّٰه تعلقهم بالمستقبل أولى من تعلقهم بالماضي فإن الماضي و الحال قد حصلا و المستقبل آت فلا بد منه فتعلق الهمة به أولى فإنه إذا ورد عن همة متعلقة به كان لها لا عليها و إذا ورد عن غير همة متعلقة به كان إما لها و إما عليها و إنما أثر فيه تعلق الهمة أن يكون لها لا عليها لما يتعلق من صاحب الهمة من حسن الظن بالآتي و الهمم مؤثرة فلو كان إتيانه عليه لا له لعاد بالهمة له لا عليه و هذه فائدة من حافظ عليها حاز كل نعيم فإذا ورد الآتي على ذي همة متعلقة بإتيانه بادر إلى الكرامة به و التأدب معه على بصيرة و سكون و حسن تأن في ذلك بخلاف من يفجأه الآتي فيدهش و يحار في كيفية تلقيه و معاملته و هو سريع الزوال فربما فارق الحال و مضى و ما قام صاحب الدهش بحقه و بما يجب عليه من الأدب معه بخلاف المستعد غير إن المستعد للآتي لا بد إن كان كاملا إن يحفظ الماضي فإنه إن لم يحفظه فاته خيره و قد جعل اللّٰه في العبد من خزائن الجود خزانة الحفظ فيكون عليه جعله في تلك الخزانة فهو صاحب حال في الحال و في الماضي فما يبقى له إلا الآتي مع الأنفاس فلا تزال القوة الحافظة على باب خزانة الحفظ تمنع إن يخرج منها ما اختزنته فيها و تأخذ ما فارق الحال فتخزنه فيها و لهذه القوة الحافظة سادنان الواحد الذكر و قد وكلته بحفظ المعاني المجردة عن المواد و السادن الآخر الخيال و قد وكلته بحفظ المثل


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