الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7861 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«قوله من عرف نفسه فقد عرف ربه» فإن أعرف الخلق بالخلق أعرفهم بالله و علمت أحدية الواحد من أحدية الكثرة و انحصار الوجود قديمه و حديثه فيما ذا ينحصر و تمييز القديم من المحدث بما ذا يتميز و ما ينسب إلى القديم الأزلي من الأسماء و الأحكام و ما ينسب إلى المخلوق المحدث من الأسماء و الأحكام و لما ذا يرجع عين العالم و ما يشهد من الحق إذا تجلى لك و رأيته و لما ذا يرجع اختلاف التجلي و تغايره هل لتغاير إدراكك في عين واحدة تختلف رؤيتك فيه و هو غير متنوع في نفسه أو ذلك التنوع في التجلي راجع إلى النسبة لا إليك و لا إليه فأما إليه فمحال عند أهل اللّٰه و ما بقي إلا لأحد أمرين أو لهما إما إليك أو إلى أمر آخر ما هو هو و لا هو أنت و هكذا تشهده فما كل من رأى عرف ما رأى و ما حار أهل الحيرة سدى فإن الأمر عظيم و الخطب جسيم و المشهد عام و الوجود طام و الكمال حاصل و العلم فاصل و الحكم نازل و التجدد مع الأنفاس في الأكوان معقول و ما يقال على الحق منقول بين معقول و غير معقول و ليس يدرك هذه الأغوار إلا أهل الأسرار و الأنوار و أولو البصائر و الأبصار فمن انفرد بسر بلا نور أو بنور بلا سر أو ببصيرة دون بصر أو ببصر دون بصيرة أو بظاهر دون باطن أو بباطن دون ظاهر كان لما انفرد به و لم يحصل على كمال و إن اتصف به و إن كان تاما فيما هو عليه و لكن الكمال هو المطلوب لا التمام فإن التمام في الخلق و الكمال فيما يستفيده التام و يفيده و متى لم تحصل له هذه الدرجة مع تمامه فإن اللّٰه أعطى كل شيء خلقه فقد تم ثم هدى لاكتساب الكمال فمن اهتدى فقد كمل و من وقف مع تمامه فقد حرم رزقنا اللّٰه و إياكم الفوز و الوصول إلى مقام العجز إنه الولي المحسان



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!