الفتوحات المكية

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[أن كل شيء عند خزائن اللّٰه]

و أعلم تعالى أن كل شيء عنده خزائنه و ما ينزله في الدنيا ﴿إِلاّٰ بِقَدَرٍ مَعْلُومٍ﴾ [الحجر:21] فإذا كان في الآخرة عاد الحكم فيما تحوي عليه هذه الخزائن التي عند اللّٰه إلى العبد العارف الذي كمل اللّٰه سعادته فيدخل فيها متحكما فيخرج منها ما يشاء بغير حساب و لا قدر معلوم بل يحكم ما يختاره في الوقت و هو أن المسعود في الآخرة يعطى التكوين و يكشف له عن نفسه أنه عين الخزانة التي عند اللّٰه فإنه عند اللّٰه فكل ما خطر له تكوينه كونه فلا يزال في الآخرة خلاقا دائما فارتفع التقدير فهو يتبوأ من الجنة حيث يشاء لا حيث يمشي به فإنه في الجنة ارتفع عنه الافتقار العرضي إلى الأشياء و ما بقي عنده إلا الفقر إلى اللّٰه خاصة و إنما ارتفع عن المسعود الافتقار العرضي لما فيه من الذلة و الانكسار و الحاجة و الجنة ليس بمحل لذلك فإن محل ذلك عموما في الدنيا و محله في الآخرة النار و كذلك الذلة فإن الحق لا يتجلى لهم قط في الاسم المذل فلا يذلون أبدا و كذلك لا يتجلى لهم في الاسم العزيز من الوجه الذي لو تجلى لهم فيه لذلوا و إنما يكسوهم اللّٰه حلة العزة به على الأمور التي يكونونها لا على أهليهم و لا على من عندهم فلا سلطان لهم و لا عز إلا فيما يتكون عنهم و لا يتكون عنهم شيء إلا منهم فيشهدون الأمر قبل تكوينه فيتعلق بهم إرادة تكوين ذلك الأمر فعين التعلق عين كينونته و ما يتأخر عنه فأمره أسرع من لمح البصر فانظر في هذا المنزل ما أعطاك فيه هذا الذكر من الفوائد الجمة الإلهية و اعلم أن للدنيا أبناء و للآخرة أبناء و للمجموع أبناء و ما نبه غيرنا على أبناء المجموع فالسعيد من جمع بين البنوتين فهو الوارث المكمل و هو القريب البعيد ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

(الباب السابع و الثلاثون و خمسمائة في معرفة حال قطب كان هجيره

﴿وَ تَخْشَى النّٰاسَ
وَ اللّٰهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشٰاهُ﴾



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