الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

عجبا في تنزيهه عن الصاحبة و الولد و عنه تولد في العالم ما تولد من ذي روح و جسم و جسد ثم إن ولادة البراهين الصحاح و الكلمات الفصاح عن نكاح عقول و شرائع ما فيه حرج و لا جناح و ما تولد عن نكاح الشبه في العقول و الأشباح فهو سفاح و هذا الباب مقفل و قد رميت إليك بالمفتاح و ما أزلته من يد الفتاح فاحذر من القدر المتاح

[السراح انفساح]

و من ذلك السراح انفساح من الباب 114 لما دعي اللّٰه الأرواح من هياكلها بمشاكلها حنت إلى ذلك الدعاء و هانت عليها مفارقة الوعاء فكان لها الانفساح بالسراح من أقفاص الأشباح فمن الناس من أفتاه النظر في عينها بالمنازل الرفيعة فقال بتجردها عن حكم الطبيعة و من الناس من وقف مع ما خلقت له من الآثار الوضعية فقال ببقاء تدبيرها و ساعدته الأدلة الشرعية فوصفها بالنعيم المحسوس و أثبت لها النظر الأول صفة السبوح القدوس و من قال بالإعادة في الأمرين انقسموا إلى قسمين و كل قسم قائل فيما ذهب إليه و عول عليه إن فيه السعادة فمنهم من قال في الإعادة رجوعها إلى النفس الكلية بالكلية و منهم من قال في الإعادة هي إعادتها إلى الأجساد في يوم المعاد على رءوس الأشهاد و الكامل من قال بالمجموع و إن ذلك معنى الرجوع فهي محبوسة في الصور الذي هو قرن من نور و النور ليس من عالم الشقاء و إن شقي بالعرض فحكمه السعادة و البقاء فمن أراد معرفة الانتقال بعد الموت فليعتبر في النوم فإنه مذهب القوم و به يقول سهل بن عبد اللّٰه و كل عليم أواه فلم يبرح صاحت تدبير و مالكه الكسير تتنوع عليها الحالات و يظهر بالفعل في جميع المقالات فصور تخلع و صور تبدو ثم ترفع و يقظة النائم من نومه مثل بعث الميت بعد موته لمشاهدة يومه فيبعثر ما في القبور ليحصل ما في الصدور و الأمر بين ورود و صدور و



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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