الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 9944 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و من ذلك سر الاعتدال وبال من الباب الأحد عشر و مائة لا يكون من الاعتدال إلا دوام الحال الاعتدال لا يقبل التكوين و لا التغيير و لا القليل و لا الكثير انظر في وجود الخلق تجده عن إرادة الحق و الإرادة انحراف بلا خلاف لأنها تعين المتعلق عند ما يعلم ما قلته و يتحقق جنة النعيم لأصحاب العلوم و جنة الفردوس لأرباب الفهوم و جنة المأوى لأهل التقوى و جنة عدن للقائمين بالوزن و جنة الخلد للمقيمين على الود و جنة المقامة لأهل الكرامة و جنة الرؤية لأصحاب البغية و كلها منازل تجديد الإنعام بأبدع ترتيب و أحسن نظام الشهوة تطلب المشتهي فإليها الانتهاء و هو المنتهى أين الاعتدال و الأصل ميال فما ثم إلا ميل عن ميل لطلب جزيل النيل لو كان ثم اعتدال ما مال التنزيه ميل و التشبيه ميل و الاعتدال بين هذين و لا يصح في العين و إذا لم يكن الاعتدال من صفاتها كان العدل من سماتها و العدل من العدول فانظر فيما أقول لو كان ثم اعتدال لكان في الوقفة و لا مالت من الميزان كفة من قال بالاستواء و الزوال قال بالانحراف و الاعتدال و كل حركة جمعت الثلاثة الأحكام عند أرباب العقول و الأفهام فعين الشروق عين الغروب و عين الاستواء عند العلماء بترحيل الشمس في منازل درج السماء و هو عن كل حيز منتقل إما متعال و إما منسفل فما ثم سكون و لكن حركة و في الحركة الزيادة و البركة فلله ما سكن في الليل و النهار و ما ثم ساكن في الأغيار لا في البصائر و لا في الأبصار أ لا تراه قد جعله عبرة للابصار عند أهل الإستبصار فانظر و اعتبر

[سر الفصل في العدل]

و من ذلك سر الفصل في العدل من الباب 112 الحق في الاعتدال فمن جار أو عدل فقد مال فإن مال لك فقد أفضل و آتي في ذلك بالنعت الأنفس و إن مال عليك فقد أبخس العدل في الأحكام لا يكون محمودا إلا من الحكام و العدل هنا من الاعتدال لا من الميل فإن ذلك إفضال



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!