الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

من أجل الذم الذي كان من اللّٰه لمن حملها و هو أن اللّٰه وصف حاملها بالظلم و الجهل ببنية المبالغة فإن حاملها ظلوم لنفسه جهول بقدر الأمانة و إذا تحقق العبد بهذه الحضرة لم يعتص عليه شيء من الممكنات و تحققه أن يكون الحق لسانه ليس غير ذلك فلا يريد شيئا إلا كان فهو واجد لكل شيء و كل من هذه حالته و وقع له توقف فيما يريد تكوينه و وجوده فقد اعتاص عليه فحاله فيه الحال الذي قال اللّٰه فيمن سبق في علمه أنه لا يؤمن بالله أن يؤمن بالله فهو و إن نطق بالله فهو مثل نطق الحق بالعبد «كقوله إن اللّٰه قال على لسان عبده سمع اللّٰه لمن حمده» و «قوله إن اللّٰه عند لسان كل قائل» في بعض محتملاته فإذا قال اللّٰه على لسان من شاء من عباده و أمر فقد يقع المأمور به من المأمور و قد لا يقع و إذا قال للمأمور به كن فإنه يقع و لا بد

إذا قلت قال اللّٰه فالقول صادق *** و إن قلت قال الناس فالقول للناس

فلا تدعى في القول إنك قائل *** و كن حاضرا بالله في صورة الناس

فإنك لا تدري بمن أنت قائل *** و ليس على من قال بالله من بأس

فظهر القصور بالنيابة و هي الشركة كذلك القائل بالحق إلا آمر به قد يقع المأمور به و قد لا يقع و الحضرة واحدة فإذا قال العبد المطاع بغير الحق فذلك يقع و لا بد لأنه مخلص للتوحيد و إنه لا يقول إذا قال أو يأمر إذا أمر من غير أن يقول بحق أو يأمر بحق إلا من حقيقته الذي هو عليها من كونه كان أصلا في كون العالم به عالما فإذا أثر بذاته في العالم العلم و يكون العالم به يتنوع في التعلق به لتنوعه لنفسه فإنه لا يعتاص عليه شيء فلو كان من أحواله وقوع ذلك المأمور به لوقع كما وقع النطق به فإنه لا ينطق من حيث ذاته إلا بما هو عليه و صورة هذه المسألة و تحقيقها كقول الحق على لسان العبد افعل فيقع أو لا يقع و ذلك أن العبد من المحال أن ينطق من حيث نفسه نطق لسان ظاهر أو باطن و إنما ينطق بالله كل ناطق فإن اللّٰه هو المنطق كما قالت الجلود



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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