الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فاعلم أن الممكنات إذا نظرتها من حيث ذاتها لم يتعين لقبولها من الأطراف طرف تكون به أولى فيكون الرب ينظر بالأولوية في وجودها و عدمها و تقدمها في الوجود و تأخرها و مكانها و مكانتها و يناسب بينها و بين أزمنتها و أمكنتها و أحوالها فيعمد إلى الأصلح في حقها فيبرز ذلك الممكن فيه لأنه لا يبرزه إلا ليسبحه و يعرفه بالمعرفة التي تليق به مما في وسعه أن يقبلها ليس غير ذلك فلهذا ترى بعض الممكنات يتقدم على بعض و يتأخر و يعلو و يسفل و يتلون في أحوال و مراتب مختلفة من ولاية و عزل و صناعة و تجارة و حركة و سكون و اجتماع و افتراق و ما أشبه ذلك و هو تقليب ممكنات في ممكنات في غير ذلك ما تتقلب

[العبودة التي لا تقبل العتق]

و أما العبودة التي لا تقبل العتق فهي العبودة لله فإن العبودة على ثلاثة أقسام عبودة لله و عبودة للخلق و عبودة للحال و هي العبودية فهو منسوب إلى نفسه و لا يقبل العتق من هذه الثلاثة إلا عبودة الخلق و هي على قسمين عبودة في حرية و هي عبوديتهم للأسباب فهم عبيد الأسباب و إن كانوا أحرارا و عبودية الملك و هي العبودية المعروفة في العموم التي يدخلها البيع و الشراء فيدخلها العتق فيخرجه عن ملك المخلوق و بقيت الحيرة في ملك الأسباب هل يخرج من استرقاق الأسباب أم لا فمن يرى أن الأسباب حاكمة عليه و لا بد و من المحال الخروج عنها إلا بالوهم لا في نفس الأمر قال ما يصح العتق من رق الأسباب و من قال بالوجه الخاص و هو الذي لا اشتراك فيه قال بالعتق من رق الأسباب و عتقه معرفته بذلك الوجه الخاص فإذا عرفه خرج عن رق الأسباب و أما عبودة اللّٰه و عبودة العبودية و هي عبودة الحال فلا يصح العتق فيها جملة واحدة

[ارتباط الحياة بالأسباب المعتادة]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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