الفتوحات المكية

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و هناك تظهر سيادته لكون الآخرة محل تجلى الحق العالم فلا يتمكن لتجليه دعوى من أحد فيما ينبغي أن يكون لله أو يكون من اللّٰه لمن شاء من عباده فقوله و صل يعني إلى تحصيل الخير المحض و هو «قوله تعالى كنت سمعه و بصره» و أمثال هذا و هذا هو الوصول إلى السعادة الدائمة و هو الوصول المطلوب و لا شك أنه من وصل لم يرجع فإنه من المحال الرجوع بعد كشف الغطاء إلى محل صفة الحجاب فإن المعلوم لا يجهله العالم به بعد تعلق العلم به فرجال اللّٰه المكملون كشف اللّٰه الغطية عن بصائرهم و أبصارهم بما حصلوه من الصفات الإلهية و وقفوا عليه من الصفات الكونية و كلها كما تقدم إلهية و هؤلاء هم الأدباء الذين صلحوا البساط الحق جلساء اللّٰه و أهله و هم أهل الذكر و القرآن الذي هو الجمع و به سمي قرآنا و أما العامة فلا بد لهم من كشف الغطاء عن أبصارهم عند الموت فيرون الأمور على ما هي عليه و إن لم يكونوا من السعداء فيرون السعداء و السعادة و يرون الأشقياء و الشقاوة فلا يجهلون بعد هذا العلم و إن شقوا فهذا معنى قوله و من وصل لم يرجع و لو كان غير أديب أي غير جامع للخير و إنما سمي جامعا للخير و الخير أمر واحد لكون هذا الأمر الواحد ظهر في صور كثيرة مختلفة جمعها هذا الأديب فظهر في خيريته بكل صورة خير فسمي أديبا أي جامعا لهذه الصورة الخيرية و الخير في نفسه حقيقة واحدة ظاهرة في العالم في صور مختلفة

و ما على اللّٰه بمستنكر *** أن يجمع العالم في واحد

فالأديب ظاهر بصورة حق في العالم يفصل إجماله بصورة و يجمل تفصيله بذاته و متى لم تكن هذه الصفة و القوة في رجل فليس بأديب و هؤلاء هم الذين إذا رأوا ذكر اللّٰه و إذا ذكر اللّٰه فقد ضمن ذكره جميع العالم فمن ذكر اللّٰه بهذا اللسان فقد ذكر العالم لأن العالم صورة الحق و هو الاسم الظاهر الذي وقع فيه التفصيل و مدلوله أيضا الحق لأنه عين الدليل على نفسه فكان له من أجل هذا الاسم الباطن الذي وقع به الإجمال فالعلم واحد و هو في الباطن و تعلقاته متعددة بتعدد صور المعلومات فالعالم يكشف المعلومات ببصيرته على جهة الإحاطة بحقائقها أنها لا تتناهى معلوماته و لا مقدوراته و ما بقي في عين الممكن في قبوله الوجود نصيب للعدم و لا حكم إلا معقولية الإمكان و إن لم ينعدم بعد و لا يصح عدمه لأن خلاف المعلوم محال الوقوع و لا يكون عن الوجود عدم أصلا لأنه ليس في حقيقته صدور العدم عنه فما انعدم من الأمور التي يعطي الدليل عدمها إنما انعدم لنفسه أو لعدم الشرط في بقائه في الوجود و بهذا القدر انفصل وجود الممكن من وجود الحق فإن الإمكان لا يزول حكمه عقلا في الموجود المحدث لنفسه الممكن و الإمكان لا نصيب لوجود الحق فيه أصلا و إن كان وجود أعيان الممكنات لا ينعدم أصلا بعد وجودها و لكن كما قررناه و أما الأعراض التي قلنا إنها تنعدم لنفسها في الزمان الثاني من زمان وجودها فحقيقتها أنها أسباب عدمية لها أحكام معقولة مقولة لا يمكن جحدها و لا الحكم بها فلو كانت الأعراض أعيانا وجودية لاستحال عدمها مع حكم الإمكان فيها كما استحال في كل قائم بنفسه من الممكنات ثم إنك إذا أخذت تفصل بالحدود أعيان الموجودات وجدتها بالتفصيل نسبا و بالمجموع أمرا وجوديا لا يمكن لمخلوق أن يعلم صورة الأمر فيها فلا علم لمخلوق مما سوى اللّٰه و لا للعقل الأول أن يعقل كيفية اجتماع نسب يكون عن اجتماعها عين وجودية مستقلة في الظهور غير مستقلة في الغني مفتقرة بالإمكان المحكوم عليها به و هذا علم لا يعلمه إلا اللّٰه تعالى و ليس في الإمكان أن يعلمه غير اللّٰه تعالى و لا يقبل التعليم أعني أن يعلمه اللّٰه من شاء من عباده فأشبه العلم به العلم بذات الحق و العلم بذات الحق محال حصوله لغير اللّٰه فمن المحال حصول العلم بالعالم أو بالإنسان نفسه أو بنفس كل شيء لنفسه لغير اللّٰه فتفهم هذه المسألة فإني ما سمعت و لا علمت إن أحدا نبه عليها و إن كان يعلمها فإنها صعبة التصور مع أن فحول العلماء يقولون بها و لا يعلمون أنها هي كبلقيس تقول ﴿كَأَنَّهُ هُوَ﴾ [النمل:42] و هو هو و كذلك من تكلم في الحق في حال ظهوره في صورة خاصة مع الحق فهو يشهده و لا يعلم أنه هو و هذا إسار حكمه في العالم لمن نظر و استبصر ﴿فَإِنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعٰالَمِينَ﴾ [آل عمران:97]



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