الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«قال من يشاد هذا الدين يغلبه» و قال ﴿لاٰ يُكَلِّفُ اللّٰهُ نَفْساً إِلاّٰ وُسْعَهٰا﴾ [البقرة:286] فإنه ما كلفها إلا ما آتاها من القوة عليه و فيه علم رد النعم إلى اللّٰه و لما ذا يغلب على الإنسان شهود الضراء حتى تحول بينه و بين ما فيها من طعم النعم حتى يضجر من البلاء و هذا كان مقام عمر بن الخطاب رضي اللّٰه عنه يشاهد نعم البلاء في البلاء فيجمع بين الصبر و الشكر في الآن الواحد و كان صاحب عملين و فيه علم الاستدراج بالنعم و فيه علم حكم من عامل الحق بجهله و هو يظن في نفسه أنه على علم في ذلك و فيه علم التعرية و فيه علم صفة المفتي و الفتيا و متى يفتي المفتي هل بعد الاستفتاء أو يفتي و إن لم يستفت و هل يفتقر المفتي إلى إذن الإمام له في ذلك أم لا و فيه علم استخراج العلوم من النظر في الموجودات و تفاصيله و فيه علم أنواع الوحي و ضروبه و ما يختص بالأولياء الاتباع من ذلك و ما لا يشارك فيه النبي من الوحي و فيه علم الإحاطة بوجوه كل معلوم من هو ذلك العالم بها و ما صفته و فيه علم تفاضل الصفات لما ذا يرجع و فيه علم الأرزاق الروحانية و ما هو الرزق الذي في تناوله حياة القلوب من أرزق الذي فيه موت القلوب فإنه قد يكون الموت من الجوع و قد يكون من الشبع و الامتلاء و ما هو الرزق الذي يشبع منه و الرزق الذي لا يشبع منه و الرزق الذي يتساوى فيه جميع العالم و الرزق الذي يخص بعض العالم دون بعض و فيه علم لعلم بالرازق و أنه أحق بالعبادة لافتقار المرزوق إلى الرزق و فيه علم التحرك و السكون و من أحق بالمقام هل المتحرك أو الساكن و حكاية المتحرك و الساكن لما تحاكما في ذلك إلى العالم بذلك ذوقا و ما جرى لهما و إن صاحب الرزق من يأكله لا من يجمعه و أخبر تعالى عن لقمان الحكيم فيما أوصى به لابنه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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