الفتوحات المكية

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﴿عَلَى الْإِثْمِ وَ الْعُدْوٰانِ﴾ [المائدة:2] و رأيت علم الجبر فرأيته آخر ما تنتهي إليه المعاذر و هو سبب مال الخلق إلى الرحمة فإن اللّٰه يعذر خلقه بذلك فيما كان منهم فإنهم لا يبقى منهم إلا التضرع الطبيعي و لو لا إن نشء الآخرة مثل نشء الدنيا ذو جسم طبيعي و روح ما صح من الشقي طلب و لا تضرع إذ لو لم يكن هناك أمر طبيعي لم يكن للنفس إذا جهلت من ينبهها على جهلها لعدم إحساسها إذ لا حس لها إلا بالجزء الطبيعي الذي هو الجسد المركب و بالجهل شقاؤها فكانت النفس بعد المفارقة إذا فارقت و هي على جهالة كان شقاؤها جهلها و لا تزال فيه أبدا فمن رحمة اللّٰه بها إن جعل لها هذا المركب الطبيعي في الدنيا و الآخرة و ما كل أحد يعلم حكمة هذا المركب الذي لا يخلو حيوان عنه و رأيت علم الرجعة و هو علم البعث و حشر الأجساد في الآخرة و أن الإنسان إذا انتقل عن الدنيا لن يرجع إليها أبدا لكنها تنتقل معه بانتقاله فمن هذه الدار من ينتقل إلى الجنة و منهم من ينتقل إلى النار فالنار و الجنة تعم الدار الدنيا و نعيمها فإنه ما يبقى دار إلا الجنة و النار و الدنيا لا تنعدم ذاتها بعد وجودها و لا شيء موجود فلا بد أن يكون في الدارين أو في أحدهما فأعطى الكشف أن تكون مقسمة بين الدارين و قد ورد في الخبر النبوي من ذلك ما فيه غنية و كان بعض الصحابة يقول يا بحر متى تعود نارا و هو الحميم الذي يشربه أهل النار و «قوله ﷺ في الأنهار الأربعة إنها من الجنة فذكر سيحان و جيحان و النيل و الفرات و بين قبري و منبري روضة من رياض الجنة» و مجالس الذكر حيث كانت روضات من روضات الجنة و الأخبار في ذلك كثيرة و لسنا من أهل التقليد بحمد اللّٰه بل الأمر عندنا كما آمنا به من عند ربنا شهدناه عيانا و رأيت فيها علم مرتبة



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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