الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فإذا قطعناها أشبهناه في القطع فإنه جعلها شجنة من الرحمن فمن قطعها فقد تشبه به و هو لا يشبه شيئا و لا يشبهه شيء بحكم الأصل فتوعد من قطعها بقطعه إياه من رحمته لا منه و أمرنا بأن نصلها و هو أن نردها إلى من قطعت منه فإنه قال ﴿وَ إِلَيْهِ يُرْجَعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ﴾ [هود:123] ﴿فَاعْبُدْهُ وَ تَوَكَّلْ عَلَيْهِ وَ مٰا رَبُّكَ بِغٰافِلٍ عَمّٰا تَعْمَلُونَ﴾ [هود:123] فأضاف العمل لك و جعل نفسه رقيبا عليه و شهيدا لا يغفل و لا ينسى ذلك لتقتدي أنت به فيما كلفك من الأعمال فلا تغفل و لا تنسى لأنك أولى بهذه الصفة لافتقارك و غناه عنك و لما كانت حواء شجنة من آدم جعل بينهما ﴿مَوَدَّةً وَ رَحْمَةً﴾ [الروم:21] ينبه أن بين الرحم و الرحمن مودة و رحمة و لذلك أمرك أن تصلها بمن قطعت منه فيكون القطع له و الوصل لك فيكون لك حظ في هذا الأمر تشرف به على سائر العالم فالمودة المجعولة بين الزوجين هو الثبات على النكاح الموجب للتوالد و الرحمة المجعولة هو ما يجده كل واحد من الزوجين من الحنان إلى صاحبه فيحن إليه و يسكن فمن حيث المرأة حنين الجزء إلى كله و الفرع إلى أصله و الغريب إلى وطنه و حنين الرجل إلى زوجته حنين الكل إلى جزئه لأنه به يصح عليه اسم الكل و بزواله لا يثبت له هذا الاسم و حنين الأصل إلى الفرع لأنه يمده فلو لم يكن لم تظهر له ربانية الإمداد كما إن الكون لولاه لم يصح أن يكون ربا على نفسه و هو رب فلا بد من العالم و لم يزل ربا فلم تزل الأعيان الثابتة تنظر إليه بالافتقار أزلا ليخلع عليها اسم الوجود و لم يزل ينظر إليها لاستدعائها بعين الرحمة فلم يزل ربا سبحانه و تعالى في حال عدمنا و في حال وجودنا و الإمكان لنا كالوجوب له قال

حقق يعقلك إن فكرت مصدرنا *** نفيا لنفي و إثباتا لإثبات

من أعجب الأمر إني لم أزل أزلا *** و إنني مع هذا محدث الذات

قد كان ربك موجودا و ما معه *** شيء سواه و لا ماض و لا آت



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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