الفتوحات المكية

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«جاء في صفة العماء الذي كان فيه ربنا قبل خلق الخلق إنه عماء ما فوقه هواء و ما تحته هواء» فذكر أن له الفوق و هو كون الحق فيه و التحت و هو كون العالم فيه فلم يكن ثم غير نفس الحق ففيه يكون الهواء و جرت الرياح ما بين زعزع و رخاء و هي الحروف الشديدة و الرخوة و ظهر عن هذا النفس أصوات الرعود كالحروف المجهورة و هبوب النسيم و هي الحروف المهموسة و ظهرت الطباق في الأفلاك كالحروف المطبقة من تنفس الإنسان بالقول إذا قصده و هو في الإلهيات إذا أردناه أن نقول له كن فالحروف المطبقة في النفس الإلهي وجود سبع سماوات طباقا و كل موجود في العالم على جهة الانطباق و أبرز في هذا النفس الإلهي افتتاح الوجود بالكون إذ كان و لا شيء معه و جعلها في المتنفس حقيقة الحروف المنفتحة ثم لما أوجد العالم و فتح صورته في العماء و هو النفس الذي هو الحق المخلوق به مراتب العالم و أعيانه و أبان منازله جعل منه عالم الأجسام كالحروف المنسفلة لأنها من جانب الطبيعة و هو حد الكون الظلم و جعل منه عالم الأرواح و هو الحروف المستعلية في المتنفس بالنفس الإنساني و كل ذلك كلمات العالم فتسمى في الإنسان حروفا من حيث آحادها و كلمات من حيث تركيبها كذلك أعيان الموجودات حروف من حيث آحادها و كلمات من حيث امتزاجاتها و جعل في النفس الإلهي علة الإيجاد من جانب الرحمة بالخلق ليخرجهم من شر العدم إلى خير الوجود فكان بالحرف الهاوي ثم أبان لهم أيضا بوجود ما يؤدي إلى السعادة ببعثة الرسول الملكي و البشرى إرسال رحمة فكانت حروف اللين في المتنفس الإنساني ثم أوجد في هذا النفس الصوت عند خروجه من الباطن إلى الظاهر بطريق الوحي الذي شبهه رسول اللّٰه ﷺ سلسلة على صفوان فكان في تنفس الإنسان حروف الصفير ثم انفش ذلك النفس الإلهي على أعيان العالم الثابتة و لا وجود لها فكان مثل ذلك في الكلام الإنساني حروف التفشي ثم إن النفس الإلهي استطالت عليه الأكوان بالدعوى و التحكم حيث عددت و كثرت ما هو أحدي العين و هو في نفس المتنفس الإنساني الحرف المستطيل و هو الضاد وحده لأنه طال حتى أدرك مخرج اللام ثم إن هذا النفس الإلهي في إيجاد الشرائع قد جعل طريقا مستقيما و خارجا عن هذه الاستقامة المعينة و يسمى ذلك تحريفا و هو قوله



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