الفتوحات المكية

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فنكر الأمر و لم يعرفه فهو نكرة في معرفة يعلمها هو لا غيره لأن الأمور معينة عنده مفصلة ليس في حقه إجمال و لا يصح و لا مبهم مع علمه بالمجمل في حق من يكون في حقه الأمر مجملا و مبهما و غير ذلك فلما علمنا أن له نفسا و أنه الباطن و أن له كلاما و أن الموجودات كلماته علمنا أن اللّٰه ما أعلمنا بذلك إلا لنقف على حقائق الأمور بأنا على الصورة فنقبل جميع ما تنسبه الألوهة إليها على ألسنة رسلها و كتبها المنزلة و جعل النطق في الإنسان على أتم الوجود فجعل له ثمانية و عشرين مقطعا للنفس يظهر في كل مقطع حرفا معينا ما هو عين الآخر ميزه المقطع مع كونه ليس غير النفس فالعين واحدة من حيث إنها نفس و كثيرة من حيث المقاطع و جعلها ثمانية و عشرين لأن العالم على ثمانية و عشرين من المنازل التي تجول السيارة فيها و في بروجها و هي أمكنتها من الفلك المستدير كأمكنة المخارج للنفس لإيجاد العالم و ما يصلح له و لكل عالم أعطت هذه المقاطع التي أظهرت أعيان الحروف ثم قسم هذه المقاطع إلى ثلاثة أقسام قسم أقصى عن الطرف الأقصى الآخر فالأقصى الواحد يسمى حروف الحلق و هو على طبقات و الأقصى الثاني حروف الشفتين و ما بينهما حروف الوسط فإن الحضرة الإلهية على ثلاث مراتب باطن و طاهر و وسط و هو ما يتميز به الظاهر عن الباطن و ينفصل عنه و هو البرزخ فله وجه إلى الباطن و وجه إلى الظاهر بل هو الوجه عينه فإنه لا ينقسم و هو الإنسان الكامل أقامه الحق برزخا بين الحق و العالم فيظهر بالأسماء الإلهية فيكون حقا و يظهر بحقيقة الإمكان فيكون خلقا و جعله على ثلاث مراتب عقل و حس و هما طرفان و خيال و هو البرزخ الوسط بين المعنى و الحس فلما عرفنا اللّٰه أنه باطن و ظاهر و له نفس و كلمة و كلمات نظرنا ما ظهر من ذلك و لم ينسب إلى ذاته النفس و ما يحدث عنه فقلنا عين النفس هو العماء فإن نفس المتنفس المقصود بالعبارة عنه ما يتنزل منزلة الريح و إنما يتنزل منزلة البخار فالنفس هذا حقيقته حيث كان فكان عنه العماء كما يحدث العماء عن بخار رطوبات الأركان فيصعد و يعلو فيظهر منه العماء أولا ثم بعد ذلك يكثف و الهواء يحمله و الريح تسوقه فما هو عين الهواء و إنما هو عين البحار و لذلك



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