الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4621 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ لٰكِنَّ اللّٰهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الْإِيمٰانَ﴾ [الحجرات:7] و قال ﴿زُيِّنَ لِلنّٰاسِ حُبُّ الشَّهَوٰاتِ﴾ [آل عمران:14] الآية و قال في حق الزوجين ﴿وَ جَعَلَ بَيْنَكُمْ مَوَدَّةً وَ رَحْمَةً﴾ [الروم:21] و نهانا أن نلقي بالمودة إلى أعداء اللّٰه فقال ﴿لاٰ تَتَّخِذُوا عَدُوِّي وَ عَدُوَّكُمْ أَوْلِيٰاءَ تُلْقُونَ إِلَيْهِمْ بِالْمَوَدَّةِ﴾ [الممتحنة:1] و المحبة الواردة في القرآن كثيرة و أما الأخبار «فقوله ﷺ عن اللّٰه إنه قال كنت كنزا لم أعرف فأحببت أن أعرف فخلقت الخلق و تعرفت إليهم فعرفوني» فما خلقنا إلا له لا لنا لذلك قرن الجزاء بالأعمال فعملنا لنا لا له و عبادتنا له لا لنا و ليست العبادة نفس العمل فالأعمال الظاهرة في المخلوقين خلق له فهو العامل و يضاف إليه حسنها أدبا مع اللّٰه مع كونها كل من عند اللّٰه لأنه قال ﴿وَ نَفْسٍ وَ مٰا سَوّٰاهٰا فَأَلْهَمَهٰا فُجُورَهٰا وَ تَقْوٰاهٰا﴾ ﴿وَ اللّٰهُ خَلَقَكُمْ وَ مٰا تَعْمَلُونَ﴾ [الصافات:96] و قال ﴿اَللّٰهُ خٰالِقُ كُلِّ شَيْءٍ﴾ [الرعد:16] فدخلت أعمال العباد في ذلك و «قال رسول اللّٰه ﷺ إن اللّٰه يقول ما تقرب المتقربون بأحب إلي من أداء ما افترضته عليهم و لا يزال العبد يتقرب إلي بالنوافل حتى أحبه فإذا أحببته كنت سمعه الذي يسمع به و بصره الذي يبصر به» الحديث و من هذا التجلي قال من قال بالاتحاد و بقوله ﴿وَ مٰا رَمَيْتَ إِذْ رَمَيْتَ وَ لٰكِنَّ اللّٰهَ رَمىٰ﴾ [الأنفال:17] و بقوله ﴿وَ مٰا تَعْمَلُونَ﴾ [الصافات:96] و «في الخبر أن اللّٰه» «يحب كل مفتن تواب» و «في الخبر وجبت للمتحابين في» و «في الخبر حبوا اللّٰه لما أسدى إليكم من نعمه» و «في الخبر أن اللّٰه جميل يحب الجمال و أن اللّٰه يحب أن يمدح» و



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!