الفتوحات المكية

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﴿لِنُرِيَهُ مِنْ آيٰاتِنٰا﴾ [الإسراء:1] فعرج به إلى السموات إلى أن بلغ به الإسراء إلى حيث قدره اللّٰه له من المنازل العالية فأراه من الآيات ما زاده علما بالله إلى علمه لذا قرن به أنه هو السميع لما خوطب به البصير لما شاهده من الآيات فالسائحون من عباد اللّٰه يشاهدون من آيات اللّٰه و من خرق العوائد ما يزيدهم قوة في إيمانهم و نفسهم و معرفتهم بالله و أنسابه و رحمة بخلقه و شفقة عليهم فإذا رأوا قنة جبل شامخ تذكروا علوا لهم حيث لم يطلبوا من اللّٰه إلا الأنفس و هو الانفراد به في خلوة من أشكالهم حذرا من الشغل بسواهم و إذا كانوا في بطن واد أو قاع من القيعان ذكرهم ذلك بعبوديتهم و تواضعهم تحت جبروت سلطان خالقهم فذلوا في أنفسهم و عرفوا مقدارهم و علموا إن ما ينالونه من الرفعة إنما ذلك عناية اللّٰه لا باستحقاق ثم إذا كانوا على ساحل بحر تذكروا بالبحر سعة علم اللّٰه و سعة عظمته و رحمته ثم يرون مع هذه العظمة ما تحدث فيه الرياح من تلاطم الأمواج و تداخل بعضها في بعض فيذكرهم ذلك في جناب الحق تعارض الأسماء الإلهية و تداخل بعضها في بعض في تعلقاتها مثل الاسم المنتقم و السريع الحساب و الشديد العقاب عند معصية العاصي و يجيء أيضا في مقابلة هذه الأسماء الاسم الغفار و العفو و المحسان فتتقابل الأسماء على هذا العبد العاصي و كذلك التردد الإلهي يعتبرونه في تموج هذا البحر فيفتح لهم في بواطنهم في علوم إلهية لا ينالونها إلا في مشاهدة ذلك البحر في سياحتهم فيكثر منهم التكبير و التعظيم لجناب اللّٰه ثم ما يحصل لهم من خرق العوائد في استئناس الوحوش بهم و إقبالهم عليهم و فيهم من تكلمه الوحوش بلسانه و فيهم من يعلم منطقها و ترى ما هم عليه من عبادة اللّٰه ما يزيدهم ذلك حرصا و اجتهادا في طاعة ربهم و الحكايات في كتب القوة في ذلك كثيرة جدا و لو لا أن كتابنا هذا مبناه على المعارف و الأسرار لسقنا من الحكايات ما شاهدناه بنفوسنا في سياحتنا و اجتماعنا بهذه الطائفة و ما رأينا فيهم من العجائب و هذا القدر كاف في الغرض المقصود من هذا الباب حتى يرد الكلام إن شاء اللّٰه في السفر و مراتبه فيما بعد عند ذكر المسافر و السالك و الطريق ﴿وَ اللّٰهُ يَهْدِي مَنْ يَشٰاءُ﴾ [البقرة:213] إلى الحق و



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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