الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
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و يقول هو سبحانه سمعت و أجبت فإنه قال ﴿أُجِيبُ دَعْوَةَ الدّٰاعِ إِذٰا دَعٰانِ﴾ [البقرة:186] و صيغة الأمر من العبد في الطلب ﴿اِغْفِرْ لَنٰا﴾ [البقرة:286] ﴿اِرْحَمْنٰا﴾ [الأعراف:155] ﴿اُعْفُ عَنّٰا﴾ [البقرة:286] ﴿فَانْصُرْنٰا﴾ [البقرة:286] و ﴿اِهْدِنَا﴾ [الفاتحة:6] ﴿اُرْزُقْنٰا﴾ [المائدة:114] و شبه ذلك و صيغة النهي من العبد في الدعاء ﴿لاٰ تُزِغْ قُلُوبَنٰا﴾ [آل عمران:8] ﴿لاٰ تَجْعَلْنٰا فِتْنَةً لِلْقَوْمِ الظّٰالِمِينَ﴾ [يونس:85] ﴿لاٰ تُخْزِنٰا يَوْمَ الْقِيٰامَةِ﴾ [آل عمران:194] ﴿لاٰ تُخْزِنِي يَوْمَ يُبْعَثُونَ﴾ [الشعراء:87]

[انقطاع الرسالة و النبوة التشريعية و بقاء المبشرات و حكم المجتهدين]

و ليست النبوة بمعقول زائد على هذا الذي ذكرنا إلا أنه لم يطلق على نفسه من ذلك اسما كما أطلق في الولاية فسمى نفسه وليا و ما سمي نفسه نبيا مع كونه أخبرنا و سمع دعاءنا فهو من الوجهين بهذه المثابة و لهذا «قال ﷺ إن الرسالة و النبوة قد انقطعت» و ما انقطعت إلا من وجه خاص انقطع منها مسمى النبي و الرسول و لذلك «قال فلا رسول بعدي و لا نبي» ثم أبقى منها المبشرات و أبقى منها حكم المجتهدين و أزال عنهم الاسم أبقى الحكم و أمر من لا علم له بالحكم الإلهي أن يسأل أهل الذكر فيفتونه بما أداه إليه اجتهادهم و إن اختلفوا كما اختلفت الشرائع ﴿لِكُلٍّ جَعَلْنٰا مِنْكُمْ شِرْعَةً وَ مِنْهٰاجاً﴾ [المائدة:48] و كذلك لكل مجتهد جعل له شرعة من دليله و منهاجا و هو عين دليله في إثبات الحكم و يحرم عليه العدول عنه و قرر الشرع الإلهي ذلك كله فحرم الشافعي عين ما أحله الحنفي و أجاز أبو حنيفة عين ما منعه أحمد بن حنبل فأجاز هذا ما لم يجز هذا فاتفقوا في أشياء و اختلفوا في أشياء و كل في هذه الأمة شرع مقرر لنا من عند اللّٰه مع علمنا إن مرتبتهم دون مرتبة الرسل الموحى إليهم من عند اللّٰه

[النبوة من حيث عينها و حكمها ما نسخت و إنما انقطع الوحى الخاص بالرسول و النبي]



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