الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فكل حال في الكون فهو عين شأن إلهي و قد تقرر في العلم الإلهي أنه تعالى لا يتجلى في صورة واحدة لشخصين و لا في صورة واحدة لشخص مرتين و كل تحل له كلام فذلك الكلام لهذا الحال من هذا التجلي هو المعبر عنه بالحديث فالحديث لا يزال أبدا غير أنه من الناس من يفهم أنه حديث و من الناس من لا يعرف ذلك بل يقول ظهر لي كذا و كذا و لا يعرف أن ذلك من حديث الحق معه في نفسه لأنه حرم عين الفهم عن اللّٰه فيما يحسب أنه خاطر

[الخواطر كلها من الحديث الإلهي]

و الذين قسموا الخواطر إلى أربعة فذلك التقسيم لا يقع في الحديث فإن الحديث حديث في كل قسم و إنما الأقسام وقعت في الذوات التي فهم منها ما أريد بالحديث فيقال خاطر شيطاني و هو حديث رباني و قول إلهي لما أراده الحق قال له كن فكان فناجاه الاسم البعيد كما يتلقاه من الحديث الإلهي في الخاطر الملكي الاسم القريب كما يتلقاه من الحديث الإلهي في الخاطر النفسي الاسم المريد كما يتلقاه من الحديث الإلهي في الخاطر الرباني الاسم الحفيظ فهذه الخواطر كلها من الحديث الإلهي الذي لا يشعر به إلا رجال اللّٰه

[الكلام كله حادث قديم]

فالعالم كله على طبقاته لا يزالون في الحديث فمن رزق الفهم عنه تعالى و عرفه فذلك المحدث و هو من أهل الحديث و علم أن كل ما سمعه حديث بلا شك و إن اختلفت ألقابه كالسمر و المناجاة و المناغاة و الإشارات فالكلام كله حادث قديم حادث في السمع قديم في السمع فافهم

(السؤال السادس و الخمسون)ما الوحي

الجواب ما تقع به الإشارة القائمة مقام العبارة من غير عبارة فإن العبارة تجوز منها إلى المعنى المقصود بها و لهذا سميت عبارة بخلاف الإشارة التي هي الوحي فإنها ذات المشار إليه و الوحي هو المفهوم الأول و الإفهام الأول و لا أعجل من أن يكون عين الفهم عين الإفهام عين المفهوم منه فإن لم تحصل لك هذه النكتة فلست صاحب وحي أ لا ترى أن الوحي هو السرعة و لا سرعة أسرع مما ذكرناه

[إن اللّٰه إذا تكلم بالوحي كأنه سلسة على صفوان]



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